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________________ ५२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ७२. वग्गणासद्दो णामवग्गणा । सो एसो त्ति बुद्धीए वग्गणासरूवेण संकप्पिदत्थो ढवणवग्गणा । दव्ववग्गणा दुविहा आगम-णोआगमदव्ववग्गणाभएण । वग्गणापाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदव्ववग्गणा णाम । णोआगमदव्ववग्गणातिविहा जाणुगसरीर-भवियतव्वदिरित्त-णोआगमदव्ववग्गणाभेएणा जाणगसरीर-भवियदव्ववग्गणाओ सुगमाओ। तवदिरित्त-दव्ववग्गणा दुविहा- कम्मवग्गणा पोकम्मवग्गणा चेदि । तत्थ कम्मवग्गणा णाम अटुकम्मक्खंधवियप्पा । सेसएक्कोणवीसवग्गणाओ णोकम्मवग्गणाओ। एगागासोगाहणप्पहुडि पदेसुत्तरादिकमेण जाव देसूणघणलोगे ति ताव एदाओ खेत्तवग्गणाओ। कम्मदव्वं पडुच्च समयाहियावलियप्पहुडि जाव कम्मदिदि ति णोकम्मदव्वं पडुच्च एगसमयादि जाव असंखेज्जा लोगा ति ताव एदाओ कालवग्गणाओ। भाववग्गणा दुविहा आगम-णोआगमभाववग्गणाभेएण। वग्गणापाहुडजाणगो उवजुत्तो आगमभाववग्गणा। ओदइयादिपंचण्णं भावाणं जे भेदा ते णोआगमभाववग्गणा । एवं वग्गणाणिक्खेवे त्ति समत्तमणयोगद्दारं*। वग्गणणयविभासणदाए को णओ काओ वग्गणाओ इच्छदि । णेगम-ववहार-संगहा सव्वाओ ।। ७२ ॥ कुदो ? दवट्ठियाणं तिग्णमेसि णयाणं विसए छण्णं णिक्खेवाणमत्थित्तं पडि • वर्गणाशब्द नामवर्गणा है। वह यह है' इस प्रकार बुद्धि द्वारा वर्गणारूपसे संकल्पित अर्थ स्थापनावर्गणा है। द्रव्यवर्गणा दो प्रकारको है- आगमद्रव्यवर्गणा और नोआगद्रव्यवर्गणा । वर्गणाप्राभूतको जाननेवाला किन्तु वर्तमान में उसके उपयोगसे रहित जीव आगमद्रव्य वर्गणा है। नोआगमद्रव्यवर्गणा तीन प्रकारकी है - ज्ञा यकशरीरनोआगमद्रव्यवर्गणा, भावि. नोआगमद्रव्यवर्गणा और तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यवर्गणा । ज्ञायकशरीर और भाविनोआगमद्रव्यवर्गणायें सुगम हैं। तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यवर्गणा दो प्रकारको है-- कर्मवर्गणा और नोकर्मवर्गणा। उनमें से आठ प्रकारके कर्मस्कन्धोंके भेद कर्मवर्गणा है, तथा शेष उन्नीस प्रकारकी वर्गणायें नोकर्मवर्गणायें हैं। एक आकाशप्रदेशप्रमाण अवगाहनासे लेकर प्रदेशोत्तर आदिके क्रमसे कुछ कम घनलोक तक ये सब क्षेत्रवर्गणायें हैं। कर्मद्रव्य की अपेक्षा एक समय अधिक तक आवलिसे लेकर उत्कृष्ट कर्मस्थिति तक और नोकर्मद्रव्यकी अपेक्षा एक समयसे लेकर असख्यात लोकप्रमाण काल तक ये सब कालवर्गणायें हैं। भाववर्गणा दो प्रकारकी है- आगमभाववर्गणा और नोआगमभाववर्गणा । वर्गणाप्राभतको जाननेवाला और वर्तमान में उसके उपयोगसे युक्त जीव आगमवर्गणा है । औदयिक आदि पाँच भावोंके जो भेद हैं वे सब नोआगमभाववर्गणा हैं । इस प्रकार वर्गणानिक्षेप अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। वर्गणानयविभाषणताका प्रकरण है-- कौन नय किन वर्गणाओंको स्वीकार करता है ? नैगम, व्यवहार संग्रहनय सब वर्गणाओंको स्वीकार करते हैं ।। ७२ ।। ___ क्योंकि, इन तीनों द्रव्यार्थिक नयोंके छ हों निक्षेप विषय हैं इस बातक स्वीकार करने में कोई * ता. प्रतो :-प्पहुडि कम्मदिदि ' इति पाठ: 1 * ता. प्रतो '-दारं (१) ।' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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