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५, ६, ७१.) बंधणाणुयोगद्दारे वग्गणाणिक्खेवपरूवणा गमो वग्गणअंतराणुगमो वग्गणभावाणुगमो वग्गणउवणयणाणुगमो वग्गणपरिमाणाणुगमो वग्गणभागाभागाणुगमो वग्गणअप्पाबहुए त्ति ॥ ७० ॥
संपहि वग्गणा दुविहा-अब्भंतरवग्गणा बाहिरवग्गणा चेदि । जा सा बाहिरवग्गणा सा पंचण्हं सरीराणं चदुहि अणुयोगद्दारेहि उवरि भणिहिदि । जा सा अब्भंतरवग्गणा सा दुविहा एगसेडि-णाणासेडिभेएण । तत्थ एगसेडिवग्गणाए इमाणि सोलस अणयोगहाराणि णादवणि भवंति । संपहि एदेहि सोलसअणुयोगद्दारेहि जहाकमेण वग्गणाणमणुगमं कस्सामो
वग्गणणिक्खेवे ति छविहे वग्गणणिक्खेवे- गामवग्गणा टुवणवग्गणा वव्ववग्गणा खेत्तवग्गणा कालवग्गणा भाववगगणा चेदि ॥७१॥ निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः । सो किमळं कीरदे? प्रकृती प्ररूपणार्थम् । उक्तंच
__ अवगयणिवारणटुं पयदस्स परूवणाणिमित्तं च ।
संसयविणासणठें तच्चत्थवधारणटुं च ॥ १ ॥ छच्चेव णिक्खेवा एत्थ किमळं कदा?ण एस दोसो, छच्चेवे ति णियमाभावादो । वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणा परिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणाअल्पबहुत्वानुगम ॥ ७० ॥
वर्गणा दो प्रकारकी है-आभ्यन्तरवर्गणा और बाह्यवर्गणा । जो बाह्यवर्गणा है वह पांच शरीरों सम्बन्धी चार अनुयोगद्वारोंके द्वारा आगे कहेंगे । जो अभ्यन्तरवर्गणा है वह एकश्रेणि और नानाश्रेणिके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमें से एकश्रेणिवर्गणाके ये सोलह अनुयोगद्वारा ज्ञातव्य हैं । अब इन सोलह अनुयोगद्वारोंके द्वारा यथाक्रमसे वर्गणाओंका विचार करेंगे।
वर्गणानिक्षेपका प्रकरण है । वर्गणानिक्षेप छह प्रकारका है - नामवर्गणा, स्थापनावर्गणा, द्रव्यवर्गणा, कालवर्गणा और भाववर्गणा ॥ ७१ ॥
जो निश्चयमें रखता है वह निक्षेप है । शंका-वह निक्षेप किस लिये करते हैं ?
समाधान-प्रकृतका निरूपण करनेके लिये। कहा भी है- अप्रकृत अर्थका निराकरण करने के लिये, प्रकृत अर्थका कथन करनेके लिये, संशयका विनाश करनेके लिये, और तत्त्वार्थका निश्चय करने के लिये निक्षेप किया जाता है ।। १॥
शंका-यहाँ छह ही निक्षेप किसलिये किये गये हैं ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, निक्षेप छह ही होते हैं ऐसा कोई नियम नहीं है । * अ. प्रती ' भणिहिदि ' इति पाठः । ४ अ. आ. प्रत्योः ' -मणुगमणं ' इति पाठ! ©ता. अ. आ. प्रतिषु 'प्रकृति-' इति पाठः।
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