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________________ ५, ६, ६९. ) बंधणाणुयोगद्दारे वग्गणाणमणुगमणट्टदा वग्गणाणमणुगमणठ्ठदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणुओगद्दाराणि णादवाणि भवंति- वग्गणा वग्गणदव्वसमदाहारो अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा अवहारो जवमज्झं पदमीमांसा अप्पाबहुए त्ति ॥६९।। संपहि एदेसिमटण्णमणुयोगद्दाराणमत्थपरूवणा कीरदे । तं जहा- तत्थ वग्गणपरूवणा किमट्ठ कीरदे ? एगपरमाणुवग्गणप्पहुडि एगेगपरमाणुत्तरकमेण जाव महावखधो त्ति ताव सव्ववग्गणाणमेगसेडिपरूवणठं कीरदे । वग्गणदव्वसमुदाहारो किमढमागदो? पुवुत्तवग्गणाणं किं समाणा पोग्गला अण्णे वि अस्थि आहो त्थि, काओ वग्गणाओ धुवाओ काओ वा अद्धवाओ, काओ सांतराओ काओ वा पिरंतराओ त्ति इच्चादिवग्गणविसेसं चोद्दसअणुयोगद्दारेहि णाणेगसे डिगयं परूवणटुमागदो। अणंतरोवणिधा किमट्टमागदा? परमाणदव्ववग्गणाहितो दुपदेसियर दव्ववग्गणा दव्वटुपदेसटुदाहि* कि सरिसा आहो विसरिसा दुपदेसियदव्ववग्गणादो तिपदेसियदव्ववग्गणा दग्वटुपदेसटुदाहि ( कि) सरिसा आहो विसरिसा एवमणंतरहेट्ठिमहेट्टिमवग्गणाहितो अणंतरउवरिम (उवरिम) वग्गणाणं दव्वपदेसट्टपरूवणटुमागदा । परंपरोवणिधा किमट्ठमागदा ? परमाणुपोग्गलदव्यवग्गणादो केद्रं गंतूण दुगुणा वा वर्गणाओंका अनुगमन करते समय ये आठ अनयोगद्वार ज्ञातव्य हैं- वर्गणा, वर्गणाद्रव्यसमुदाहार, अनन्तरोपनिधा, परम्परोपनिधा अवहार, यवमध्य, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व ।। ६९॥ अब इन आठ अनुयोगद्वारोंकी अर्थप्ररूपणा करते हैं। यथाशंका-- यहाँ वर्गणा अनुयोगद्वारकी प्ररूपणा किसलिए की है ? समाधान-- एक परमाणुरूप वर्गणासे लेकर एक एक परमाणुकी वृद्धिक्रमसे महाकन्ध तक सब वगणाओंकी एक श्रेणि है, इस बातका कथन करने के लिए वर्गणा अनुयोगद्वारकी प्ररूपणा की है। शंका-- वर्गणाद्रव्यसमुदाहार अनुयोगद्वार किसलिए आया है ? समाधान-- पूर्वोक्त वर्गणाओंके पुद्गल क्या समान हैं या अन्य प्रकार हैं या अन्य प्रकार नहीं है, कोन वर्गणार्य ध्रुव हैं, कौन वर्गणायें अध्रुव हैं, कौन वर्गगायें सान्तर हैं और कौन वर्गणायें निरन्तर हैं; इस प्रकार चौदह अनुयोगद्वारोंके द्वारा नानाश्रेणिगत और एकश्रेणिगत वर्गणाविशेषका कथन करनेके लिए यह अनुयोगद्वार आया है। शंका-- अनन्तरोपनिधा अनुयोगद्वार किसलिए आया है ? समाधान- परमाणुद्रव्यवर्गणासे द्विप्रदेशी द्रव्यवर्गणा द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताकी अपेक्षा क्या सदृश है या विसदृश है, द्विप्रदेशो द्रव्यवर्गणासे त्रिप्रदेशी द्रव्यवर्गणा द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताकी अपेक्षा क्या सदृश है या विसदृश है, इस प्रकार अनन्तर पूर्व पूर्व वर्गणासे अनन्तर उपरिम उपरिम वर्गणाकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताका कथन करने के लिए यह अनुयोगद्वार आया है। शंका-- परम्परोपनिधा अनुयोगद्वार किसलिए आया है ? ४ ताप्रती ' दुपदेहि ( सि ) य ' आ. प्रती · दुपदेहिय-' इति पाठः । *अ. प्रती 'दब्वपदेसट्रदाहि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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