SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ६३. जो अणादियसरीरिबंधो णाम यथा अटण्णं जीवमज्झपदेसाणं अण्णोण्णपसबंधो भवदि सो सम्वों अणावियमरीरिबंधो णाम ॥ ६३ ।। जीवमज्झपदेसाणमट्टण्णं पि जो बंधो सो अणादियसरीरिबन्धो होदि । किंतु एसो ण पओअबंधो; साभावियत्तादो ति वुत्ते- ण एस दोसो; दिटतदुवारेण णिद्दिद्वत्तादो । जहा अण्णं पि जीवमझपदेसाणमणादियो बंधो तहा सरीरिस्स जो पुवरहिदबंधो सो अणादियसरीरिबंधो त्ति घेत्तव्यो । को सो बंधो ? सरीरिस्स कम्म-णोकम्मसामण्णेण जो बंधो सो अणादियसरीरिबंधो णाम । जो सो थप्पो कम्मबंधो णाम यथा कम्मे त्ति तहा णेवव्वं ।६४॥ कम्मबंधस्स चउसटिभंगा जहा कम्माणयोगहारे परूविदा तहा परूवेदम्वा । __ एवं संखेवेण परूविदूण बंधो त्ति समत्तमणुयोगद्दारं । जो अनादिशरीरिबन्ध है। यथा- जीवके आठ मध्यप्रदेशोंका परस्पर प्रदेशबन्ध होता है यह सब अनादि शरीरिबन्ध है ॥ ६३ ॥ शंका- जीवके आठ मध्यप्रदेशोंका जो बन्ध है वह अनादिशरीररिबन्ध है, यह ठीक है; किन्तु यह प्रयोगबन्ध नहीं है, क्योंकि, यह स्वाभाविक होता है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है। क्योंकि दृष्टान्त द्वारा अनादि शरीरिबन्धका यहाँ निर्देश किया है । जिस प्रकार जीवके आठ मध्यप्रदेशोंका अनादिबन्ध होता है उसी प्रकार शरीरका जो पूर्व कालकी मर्यादासे रहित बन्ध है वह अनादि शरीरिबन्ध है, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। शंका- वह बन्ध क्या है ? समाधान- शरीरीका कर्म और नोकर्म सामान्यके साथ जो बन्ध है वह अनादि शरीरिबन्ध है। जो कर्मबन्ध स्थगित कर आये हैं उसे कर्मअनुयोगद्वारके समान जानना चाहिए ॥ ६४ ॥ कर्मबन्धके चौंसठ भंग जिस प्रकार कर्म अनुयोगद्वारमें कहे हैं उसी प्रकार कहने चाहिए । इस प्रकार संक्षेपसे कथन करनेपर बन्ध अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। ४ आ० प्रती 'होज्ज' इति पाठ Jain Education Internatione Private & Personal use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy