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५, ६, ६२.)
बंधणाणुयोगद्दारे दव्वबंध परूवणा
( ४५
जो सो सादियसरी रिबंधो नाम सो जहा सरीरबंधो तहा
दव्वा ॥ ६२ ॥
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सरीरी णाम जीवो। तस्स जो बंधो ओरालियादिसरीरेहि सो सरीरिबंधो णाम । तस्स भंगपरूवणा जहा सरीरबंधस्स परूविदा तहा परूवेदव्वा । तं जहाओरालियसरीरेण सरीरिस्त बंधो। वेउव्वियसरीरेण सरीरिस्स बंधो । आहारसरीरेण सरोरिस्त बंधो। तेजइयसरीरेण सरोरिस्स बंधो । कम्मइयसरीरेण सरीरिस्त बन्धो 1 सरीरिणा सरीरस्स बन्धो । कधमेसो छटुभंगो जुज्जदे ? ण, कम्म णोकम्माणमणादिसंबंधेण मुत्तत्तमुवगयस्त जीवस्स घणलोगमेत्तपवेसल्स जोगवसेण संघार- विसप्पणधम्मियस्स अवयवाणं परतंतलक्खण संबंधेण छट्टमंगुप्पत्तीए विरोहाभावादो । एवमेदे छब्भंगा ६ । ओरालिय-तेजासरीरेहि सरोरिस्स गंधो, ओरालियकम्मइयसरी रेहि सरीरिस्स बंधो, ओरालिय- तेजा - कम्मइयसरीरेहि सरीरिस्स गंधो, एवमोरालियसरी रेहि निरुद्धे तिष्णि भंगा ३ । वेउब्विय- आहारसरीराणं एवं चेव तिष्णि तिणि भंगा परूवेदव्वा । तेजा कम्मइयसरोरेहि सरोरिस्स बंधो १ । एवं तेयासरीरे णिरुद्धे * एक्को चेव दुसंजोगमंगो । कम्मइयम्मि दुसंजोग भंगो णत्थि । एवमेदे सोलस सरीरिबंधा १६ ।
जो सादि शरीरिबन्ध हैं वह शरीरबन्धके समान जानना चाहिए ।। ६२ ।।
शरीरी जीवको कहते हैं। उसका जो औदारिक आदि शरीरोंके साथ बन्ध होता है वह शरीरबन्ध है । इसके भंगों का कथन, जिस प्रकार शरीरबन्धके भंगोंका कथन किया है, उस प्रकार करना चाहिए। यथा-औदारिकशरीर के साथ शरीरीका बन्ध, वैक्रियिकशरीर के साथ शरीरीका बन्ध, आहारकशरीर के साथ शरीरीका बन्ध, तैजसशरीर के साथ शरीरीका बन्ध कार्मणशरीर के साथ शरीरीका बन्ध, ओर शरीरीके साथ शरीरका बन्ध ।
शंका- यहाँ छठवाँ भंग कैसे बन सकता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, जो कर्म ओर नोकर्मीका अनादि सम्बन्ध होनेसे मूर्तपनेको प्राप्त हुआ है और जिसके घनलोकप्रमाण जीवप्रदेश योगके वशसे सकोच और विस्तार धर्मवाले हैं ऐसे जीवके अवयवोंके परतन्त्रलक्षण सम्बन्ध से छठे भंगकी उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं आता,
इस प्रकार ये छह भंग हुए ६ ।
दारिश की विवक्षा होनेपर तीन भंग होते हैं ३ । इसी प्रकार तीन तीन भंग कहने चाहिए । तैजस-कार्मण इस प्रकार तैजसशरीरकी विवक्षा होनेपर द्विसंयोगी एक ही द्विसंयोगी भंग नही होता । इस प्रकार ये सोलह शरीरिबन्ध होते हैं १६ ।
औदारिक- तैजसशरीरोंके साथ शरीरीका बन्ध, औदारिक कार्मण शरीरोंके साथ शरीरीका बन्ध, और औदारिक- तेजस - कार्मण शरीरोंके साथ शरीरीका बन्ध; इस प्रकार वैक्रियिक और आहारक शरीरोंके शरीरोंके साथ शरीरीका बन्ध, भंग होता है १ । कार्मणशरीर में
ता. आ. प्रत्योः ' तेवासरीरणिद्वे ' इति पाठ: ।
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