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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
आहार - तेया- कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५६ ॥ एवाणि चत्तारिवि सुत्ताणि सुगमाणि । तेया- तेया सरीरबंधो ॥ ५७ ॥ तेयासरीर - कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५८ ॥
सेसभंगा एत्थ किरण परुविदा ? ण, पुणरुत्तवोसध्द संगादो ।
कम्मइय-कम्मइयसरीरबंधो ५९ ॥
एत्थ एवको चेव भंगो । सेसा गंगा संता वि किमट्ठे ण परूविदा ? पुव्वं
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परुविदत्तादो ।
+ सो सव्वो सरीरबंधो णाम ।। ६० ।।
एसो पण्णारसविहो बंधो सरीरबंधो त्ति घेत्तव्वो ।
जो सो सरीरिबंधो णाम सो दुविहो - सादियसरी रिबंधो चेव
अणादियसरीरिबंधो चेव ।। ६१ ।।
एवं दुहि चेव सरीरिबंधो होदि; अण्णस्सासंभवादो । आहारक- तैजस- कार्मणशरीरबन्ध ॥ ५६ ॥
ये चार सूत्र भी सुगम हैं ।
तेजस - तेजसशरीरबन्ध ।। ५७ ।।
तंजसशरीर- कार्मणशरीरबन्ध ।। ५८ ।
शका - शेष भंग यहाँ क्यों नहीं कहे ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, पुनरुक्त दोषका प्रसंग प्राप्त होता है । कार्मण-कार्मणशरीरबन्ध ।। ५९ ।।
( ५, ६, ५६.
यहाँ एक ही भंग होता है ।
शंका- शेष भंग भी होते है, फिर वे किसलिए नहीं कहे ?
समाधान- क्योंकि, उनका कथन पहले कर आये हैं ।
वह सब शरीरबन्ध है ॥ ६० ॥
यह पन्द्रह प्रकारका बन्ध शरीरबन्ध है, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । जो शरीरिबन्ध है वह दो प्रकारका है- सादि शरीरिबन्ध और अनादि शरीरिबन्ध ।। ६१ ॥
इस प्रकार शरीरिबन्ध दो प्रकारका ही होता है, क्योंकि अन्य प्रकारके शरीरिबन्धका होना असम्भव है |
अ० प्रती एदाणि चत्तारि सुत्ताणि वि सुगमाणि आ. प्रतो 'एदाणि वि सुत्ताणि सुगमाणि इति पाठ: : प्रतिषु धवलान्तर्गतमिदं न सूत्रत्वेनोपलभ्यते ।
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