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________________ ४४ ) छक्खंडागमे वग्गणा - खंड आहार - तेया- कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५६ ॥ एवाणि चत्तारिवि सुत्ताणि सुगमाणि । तेया- तेया सरीरबंधो ॥ ५७ ॥ तेयासरीर - कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५८ ॥ सेसभंगा एत्थ किरण परुविदा ? ण, पुणरुत्तवोसध्द संगादो । कम्मइय-कम्मइयसरीरबंधो ५९ ॥ एत्थ एवको चेव भंगो । सेसा गंगा संता वि किमट्ठे ण परूविदा ? पुव्वं 1 परुविदत्तादो । + सो सव्वो सरीरबंधो णाम ।। ६० ।। एसो पण्णारसविहो बंधो सरीरबंधो त्ति घेत्तव्वो । जो सो सरीरिबंधो णाम सो दुविहो - सादियसरी रिबंधो चेव अणादियसरीरिबंधो चेव ।। ६१ ।। एवं दुहि चेव सरीरिबंधो होदि; अण्णस्सासंभवादो । आहारक- तैजस- कार्मणशरीरबन्ध ॥ ५६ ॥ ये चार सूत्र भी सुगम हैं । तेजस - तेजसशरीरबन्ध ।। ५७ ।। तंजसशरीर- कार्मणशरीरबन्ध ।। ५८ । शका - शेष भंग यहाँ क्यों नहीं कहे ? समाधान- नहीं, क्योंकि, पुनरुक्त दोषका प्रसंग प्राप्त होता है । कार्मण-कार्मणशरीरबन्ध ।। ५९ ।। ( ५, ६, ५६. यहाँ एक ही भंग होता है । शंका- शेष भंग भी होते है, फिर वे किसलिए नहीं कहे ? समाधान- क्योंकि, उनका कथन पहले कर आये हैं । वह सब शरीरबन्ध है ॥ ६० ॥ यह पन्द्रह प्रकारका बन्ध शरीरबन्ध है, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । जो शरीरिबन्ध है वह दो प्रकारका है- सादि शरीरिबन्ध और अनादि शरीरिबन्ध ।। ६१ ॥ इस प्रकार शरीरिबन्ध दो प्रकारका ही होता है, क्योंकि अन्य प्रकारके शरीरिबन्धका होना असम्भव है | अ० प्रती एदाणि चत्तारि सुत्ताणि वि सुगमाणि आ. प्रतो 'एदाणि वि सुत्ताणि सुगमाणि इति पाठ: : प्रतिषु धवलान्तर्गतमिदं न सूत्रत्वेनोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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