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५, ६, ५५. )
गद्दारे भावबंधपरूवणा
( ४३
ण, आहारसरीरेण परिणमंताणं ओरालियसरीरस्स उदयाभावेण तेण संबंधाभावादो । एवं दुसंजोगभंगपरूवणा कदा | संपहि तिसंजोगपरूवणद्वमुत्तरसुत्तं भणदि -- ओरालिय- तेया- कम्मइयसरीरबंधो ॥ ४८ ॥
ओरालिय- तेया- कम्मइयसरीरखंधाणं एक्कम्हि जीवे णिविद्वाणं जो अण्णोष्णेण बंध सो ओरालिय- तेया- कम्मइयसरीरबंधो नाम । एवं तिसंजोगे एक्को चेव भंग १ | संपहि वेव्वियसरीरस्स एगादिसंजोग भंगपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदिवेव्विय- वे उब्वियसरीरबंधो ॥ ४९ ॥ वेव्विय तेयासरीरबंधो ॥ ५० ॥ वेडव्विय-कम्मइयसरीरबंधो ।। ५१ ।
वेडविय तेया- कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५२ ॥
एदाणि चत्तारि वित्ताणि सुगमाणि । आहारसरीरभंगवरूत्रणट्टमुत्तरसुत्तं भणदिआहार - आहारसरीरबंधो ॥ ५३ ॥
आहार - तेयासरीरबंधो ॥ ५४ ॥
आहार- कम्मइयसरीरबंधो ॥ ५५ ॥
समाधान- नहीं, क्योंकि, आहारकशरीररूपसे परिणमन करनेवाले जीवोंके औदारिकशरीरका उदय नहीं होनेसे उसके साथ सम्बन्ध नहीं होता ।
इस प्रकार द्विसंयोगी भंगका कथन किया । अब त्रिसंयोगी भंगका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
औदारिक- तैजस-कार्मणशरीरबन्ध ॥ ४८ ॥
एक जीव में निविष्ट हुए औदारिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरके स्कन्धों का जो परस्पर बन्ध होता है वह औदारिक- तेजस - कार्मणशरीरबन्ध है । इस प्रकार त्रिसंयोगी एक ही भंग होता है । अब वैक्रियिकशरीरके एकादिसंयोगी भंगोंका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैंवैffee- वैयिकशरीरबन्ध || ४९ ॥
वैक्रियिक- तेजसशरीरबन्ध ।। ५० ।।
वैक्रियिक- कार्मणशरीरबन्ध ॥ ५१ ॥ वैक्रियिक- तैजस- कार्मणशरीरबन्ध ।। ५२ ॥
ये चारों ही सूत्र सुगम हैं । अब आहारकशरीरके भंगोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
आहारक आहारकशरीरबन्ध ।। ५३ ।। आहारक-तैजसशरीरबन्ध ॥ ५४ ॥ आहारक- कार्मणशरीरबन्ध ॥ ५५ ॥
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