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४२. ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ४५. संपहि एगादिसंजोगे के ओरालियसरीरस्त बंधवियप्पुप्पायगढमुत्तरसुत्तं भणदि
ओरालिय-ओरालियसरीरबंधो ॥ ४५ ॥
ओरालियसरीरणोकम्मखंधाणमण्णेहि ओरालियसरीरणोकम्मक्खंधेहि जो बंधो सो ओरालिय-ओरालियसरीरबंधो । एवमेसो एगसंजोगेण एक्को चेव भंगो होदि १। संपहि दुसंजोगभंगपरूवणटुमुत्तरसुत्तं भणदि
ओरालिय-तेयासरीरबंधो ।। ४७ ।।
ओरालियसरीरपोग्गलाणं तेयासरीरपोग्गलाणं च एक्कम्हि जीवे जो परोप्परेण बंधो सो ओरालिय तेयासरीरबधो णाम १ ।
ओरालिय-कम्मइयसरीरबंधो ।। ४७ ॥ ओरालियखंधाणं कम्मइयक्खंधाणं च एक्कम्हि जीवे ट्रिदाणं जो बंधो सो ओरालिय. कम्मइयसरीरबंधो णाम २।ओरालियखंधाणं वे उब्विय आहारसरीरेहि सह णस्थि बंधो; ओरालियसरीरेण परिणदजीवे सेसदोण्णं सरीरागनमावादो। होदु णाम वेउन्वियसरीरस्स अभावो, तस्स देव-णेरइएसु चेव अस्थित्तसणादो। आहारसरीरं पुण मणुस्सेसु चेव होदि, तेण ओरालियसरीरेण सह आहारसरीरस्स संबंधेण होदवमिति? नहीं उपलब्ध होता । अब एकादि संयोगरूप औदारिक शरीरके बन्धविकल्पोंको उत्पन्न कराने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं--
औदारिक-औदारिकशरीरबंध ॥ ४५ ॥
औदारिकशरीर नोकर्मस्कन्धोंका अन्य औदारिकशरीर नोकर्मस्कन्धोंके साथ जो बन्ध होता है वह औदारिक-औदारिकशरीरबन्ध है । इस प्रकार यह एकसंयोगसे एक ही भंग होता है १ । अब द्विसंयोग भंगका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं--
औदारिक-तैजसशरीरबन्ध ॥ ४६ ॥
औदारिकशरीरके पुद्गलोंका और तैजसशरीरके पुद्गलोंका एक जीवमें जो परस्परबन्ध होता है वह औदारिक-तैजसशरीरबन्ध है १ ।
औदारिक कार्मणशरीरबत्ध ॥ ४७ ।।
एक जीवमें स्थित औदारिकस्कन्धोंका और कार्मणस्कन्धोंका जो परस्पर बन्ध होता है वह औदारिक-कार्मणशरीरबन्ध हैं २ । औदारिकस्कन्धोंका वैक्रियिक और आहारकशरीरके साथ बन्ध नहीं होता, क्योंकि, औदारिक-शरीररूपसे परिणत हुए जीवमें शेष दो शरीरोंका अभाव पाया जाता है।
शंका- इसके वैक्रियिकशरीरका अभाव भले ही रहा आवे; क्योंकि, उसका देव और नारकियोंके ही अस्तित्व देखा जाता है। किन्तु आहारकशरीर तो मनुष्योंके ही होता है, इसलिए औदारिकशरीरके साथ आहारकशरीरका सम्बन्ध होना चाहिए ?
8 अप्रती 'संजोगो' इति पाठः। *अ. आ. प्रत्योः 'सरीराणं' इति पाठः ।
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