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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं .
( ५, ६, ४२.
बंसकंबोहि अण्णोण्णजणणाए जे किज्जति घरावणादिवाराणं ढंकणठं. ते कडया णाम । जिणहरघरायदणाणं ठविदओलित्तीओ कुड्डा णाम । कुड्डाणं पोग्गलबंधो अल्लीवणबंधो णाम, बभ-दब्भ-लोह-कटु-रज्जणं बंधेण विणा अल्लियणमेत्तेणेव बंधुवलंभादो ण च एसो बंधो संसिलेसबंधे पविसदि,ओल्लमट्टियाए चिक्कणगणाभावादो। छाणेण लेविदूण जाणि पीडाणि किज्जति ताणि गोवरपीडाणिणामाएदेसि जो बंधो सो वि अल्लीवणबंधो णाम, सगदेहादो पुधभूददब्भादिबंधकारणाभावादो। जिणहरादीणं रक्खळं पासेसु विदओलित्तीओ* पागार णाम । पक्किट्टाहिरी घडिदवरंडा वा पागार णाम । तत्थ वि इट्टाहितो पुघभूदबंधकारणाणव-- लंभादो । पुव्वं पासादगोवरादीणं पक्किट्टा विणिम्मियाणमालावणबंधो होदि त्ति परविदं । संपहि तेसिं चेव अल्लोवणबंधपरूवणं कधं ण विरुज्झदे ? ण, पासादगोवर रुक्खाणमइयवडादीणं ( ? ) लोहेण लोह---कढकोलेहि य बंधं दळूण तेसिमालावणबंधपरूवणादो । तत्थ वि कुड्डाणं पुण
बाँसकी कमचियोंके द्वारा परस्पर बुनकर घर और अवन अदिके ढाँकने के लिए जो बनाई जाती हैं वे कटक अर्थात् चटाई कहलाती हैं। जिनगृह, घर और अवनकी जो भीतें बनाई जाती हैं उन्हें कुड़ कहते हैं। कूड़ोंका जो पूदगलबन्ध होता है वह अल्लीवणबन्ध कहलाता है, क्योंकि, वर्ध, दर्भ, लोह, काष्ठ और रस्सीके बन्धके बिना परस्पर मिलाने मात्रसे ही यह बन्ध उपलब्ध होता है । यह बन्ध संश्लेषबन्ध में अन्तर्भत होता है, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, गीली मिट्टी में चिक्कण गुणका अभाव है । गोवरसे लेपकर जो पीड बनाये जाते हैं वे गोवरपीड कहलाते हैं। इनका जो बन्ध होता, है वह भी अल्लीवणबन्ध है, क्योंकि, इनके बन्ध में अपनेसे भिन्न दर्भादि बन्धके कारण नहीं उपलब्ध होते । जिनगृह आदिको रक्षाके लिए पार्श्वमें जो भीतें बनाई जाती हैं वे प्राकार कहलाते हैं अथवा पकी हुई ईटोंसे जो वरण्डा बनाये जाते हैं वे प्राकार कहलाते हैं। यहाँ पर भी ईंटोंसे पृथग्भूत बन्धके कारण नहीं पाये जाते ।
शका-पहले पकी हुई ईटोंसे बने हुए प्रासाद और गोपुर आदिका आलापनबन्ध होता हैं ऐसा कह आये हैं और अब यहाँ उनका हो अल्लीवणबन्ध कह रहे हैं सो यह कथन विरोधको कैसे नहीं प्राप्त होता?
___समाधान- नहीं, क्योंकि, पहले प्रासाद, गोपुर आदिकका लोहेसे तथा लोह और काष्ठकी कीलोंसे बन्ध देखकर उनका आलापनबन्ध कहा है। परन्तु उनकी भीतोंका तो अल्लीवणबन्ध ही होता है, इसलिए उक्त कथनमें कोई विरोध नहीं है।
* अ-आ- प्रत्यो: 'जदणाए इति पाठः। .ता. प्रती 'दं (ढं) कणठं अ. आ. प्रत्यो। 'दंकणठें' इति पाठः। अ आ. प्रतीः 'कदया' इति पाठ:
1 ता . प्रती 'जिणहरघरायणाण' अ. प्रती 'जिणाहरघरावणाणं' आ. प्रतौ 'जिणहरघरावणाणं' इति पाठ।।.अ. आ. प्रत्यो: 'पीदाणि' इति पाठः । *ता म. आ. प्रतिष 'ओत्तित्तीओ' इति पाठः। ता. प्रती 'पक्किदाहि' इति पाठः । ४ता. प्रतौ इट्टाहिती
इति पाठः। * ता अ. आ. प्रतिषु कारणमुव-लंभादो इति पाठः 18 ता. प्रतौ 'पक्किट्ठा' इति पाठः ) Jain Education International For Private & Personal Use Only
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