SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ६, ४२.) बंधणाणुयोगदारे दव्वबंधपरूवणा चक्कवट्टि-बलदेवाणं चडणजोग्गा सव्वाउहावण्णा णिमणपवणवेगा अच्छे भंगे वि चक्क. घडणगुणण अपडिहयगमणा संदणा णाम । माणसेहि वुडभमाणाल सिविया णाम । कट्टियाहि बद्ध कुड्डा उवरि वंसिकच्छण्णा गिहा णाम । पक्कसइला सइला आवासा पासादा णाम । पायाराणं वारे घडिदगिहा गोवरं णाम । पुराणं पुराणं पासादाणं वंदणमालबंधणटुं पुरदो टुविदरुक्खविसेसा तोरणं णाम । एदेसि पुवुत्ताणं जे बंधा ते आलावणबंधा णाम । केणेसि बंधो होदि ? कट्टेण वा लोहेण वा रज्जुणा वा वन्भेण वा दब्भेण वा । 'वा' सद्देण वक्केण वा सुंबेण+ वा कट्ठियाए वा इच्चेवमादि घेत्तव्वं । कट्ठादीहि अण्णदम्वेहि अण्गदव्वाणं आलाविदाणं जोइदाणं बंधो होदि सो सव्वो आलावणबंधो नाम । जो सो अल्लीवणबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो -- से कडयाणं वा कुड्डाणं वा गोवरपीडाणं वा पागाराणं वा साडियाणं* वा जे चामण्णे एवमादिया अण्णदव्वाणमण्णदत्वेहि अल्लीविवाणं बंधो होदि सो सव्वो अल्लीवणबंधो नाम ॥ ४२ ॥ चक्रवर्ती और बलदेवोंके चढ़ने योग्य होते हैं, जो सब आयुधोंसे परिपूर्ण होते हैं, जो पवनके समान वेगवाले होते हैं और धुरके टूट जाने पर भी जिनके चक्रोंकी इस प्रकारकी रचना होती है जिस गुणके कारण जिनके गमनागमन में बाधा नहीं पड़ती वे स्यन्दन कहलाते हैं। जो मनुष्यों द्वारा उठाकर ले जाई जाती हैं वे शिविका कहलाती हैं। जिनकी भीत लकड़ियोंसे बनाई जाती है और जिनका छप्पर बाँस और तृणसे छाया जाता है वे गृह कहलाते हैं। ईंटों और पत्थरोंके बने हुए पत्थरबहुल आवासोंको प्रासाद कहते हैं। कोटोंके दरवाजोंपर जो घर बने होते हैं वे गोपुर कहलाते हैं । प्रत्येक पुर और प्रासादोंपर वन्दनमाला बाँधने के लिए आगे जो वृक्षविशेष रखे जाते हैं वे तोरण कहलाते हैं । इन पूर्वोक्त शकट आदिके जो बन्ध होते हैं वे आलापनबन्ध कहलाते हैं। शंका-इनका बन्धन किस पदार्थसे होता है ? समाधान-काष्ठसे, लोहसे, रस्सीसे, वर्धसे और दर्भसे होता है । यहाँ सूत्र में आये हुए 'वा' शब्दसे वकलेसे, शुम्ब अर्थात् तणविशेषसे और लकडीसे होता है इत्यादि लेना चाहिए । __ काष्ठ आदि अन्य द्रव्योंसे जो आलापित अर्थात् परस्पर सम्बन्धको प्राप्त हुए अन्य द्रव्योंका बन्ध होता है वह सब आलापनबन्ध है। जो अल्लोवणबन्ध है उसका यह निर्देश है-कटकोंका, कुड्डोंका, गोवरपीडोंका, प्राकारोंका और शाटिकाओंका तथा इनसे लेकर और जो दूसरे पदार्थ हैं उनका जो बन्ध होता है अर्थात् अन्य द्रव्योंसे सम्बन्धको प्राप्त हुए अन्य द्रव्योंका जो बन्ध होता है वह सब अल्लीवणबन्ध है ॥ ४२ ।। Aआप्रतौ 'वज्झमाणा' इति पाठ 14 अ. आ. प्रत्योः 'दब्वेण वा सद्देण' इति पाठः14 ता. अ. आ. प्रतिष 'सुभेण' इति पाठः। प्रतिष दोहदाण इति पाठः1 ४ अ. आ. प्रत्योः 'कटयाणं वा कटाणं वा इति पाठः। *ता आ प्रत्योः ! पासादियाणं' अ० प्रती 'सादियाणं इति पाठः For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy