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बंधाणुयोगद्दारे भावबंध परूवणा
( ३७
एवं दुविहो चेव पओअबंधो होदि, अण्णस्स अणुवलंभादो । को पओगबंधो णाम? जीववारेण जो समुत्पण्णी बंधो सो पओअबंधो णाम ।
जो सो कम्मबंधो नाम सो थप्पो ॥ ३९ ॥
५,
६, ३९.)
कुदो ? बहुवण्णणिज्जत्तादो ।
जो सो णोकम्मबंधो नाम सो पंचविहो- आलावणबंधो अल्लीवणबंध संसिलेस बंधो सरीरबंधो सरोरिबंधो चेदि ।। ४० ।।
एवं णोकम्मबंधी पंचविहो चेव; अण्णस्स अणुवलंभादो । तत्थ आलावणबंधो णाम रिसोति वृत्ते वुच्चदे रज्जु-वरत-कट्ठदव्वादीहि जं पुधभूदाणं दव्वाणं बंधणं सो आलावणबंधो णाम । लेवणविसेसेण जडिदाणं दव्वाणं जो बंधो सो अल्लीवणबंधो णाम । रज्जु-वरत्त- कट्ठादीहि विणा अल्लीवण विसेसेहि विणा जो चिक्कणअचिक्कणदव्वाणं चिक्कणदव्वाणं वा परोप्परेण बंधो सो संसिलेसबंधो णाम । पंचणं सरीराणमण्णोष्णेण बंधो सो सरीरबंधो णाम । जीवपदेसाणं जीवपदेसेहि पंचसरीरेहि य जो गंधो सो सरीरिबंधो णाम । संपहि आलावणबंधसरूवपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
इस तरह दो प्रकारका ही प्रयोगबन्ध होता है, क्योंकि, अन्य प्रकारका प्रयोगबन्ध उपलब्ध नहीं होता 1
शंका- प्रयोगबन्ध किसे कहते हैं ?
समाधान-जीवके व्यापार द्वारा जो बन्ध समुत्पन्न होता है उसे प्रयोगबन्ध कहते हैं। जो कर्मबन्ध है उसे स्थगित करते भें ।। ३९ ॥
क्योंकि, आगे उसका बहुत वर्णन करना है ।
जो नोकर्मबन्ध है वह पाँच प्रकारका है -- आलापनबन्ध,
अल्लीवनबन्ध,
इस प्रकार नोकर्मबन्ध पाँच प्रकारका ही होता है, क्योंकि, इनके सिवा अन्य बन्ध उपलब्ध नहीं होता । उनमें से आलापनबन्धका क्या स्वरूप है, ऐसा पूछनेपर कहते हैं- रस्सी, वरत्रा (रस्सी विशेष ) और काष्ठद्रव्य आदिकसे जो पृथग्भूत द्रव्य बाँधे जाते हैं वह आलापनबन्ध है । लेपविशेष से परस्पर सम्बन्धको प्राप्त हुए द्रव्योंका जो बन्ध होता है वह अल्लीवनबन्ध कहलाता है | रस्सी, वरत्रा और काष्ठ आदिकके बिना तथा अल्लीवन विशेष के विना जो चिक्कण और अचिक्कण द्रव्योंका अथवा चिक्कण द्रव्योंका परस्पर बन्ध होता है वह संश्लेषबन्ध कहलाता है । पाँच शरीरोंका जो परस्पर बन्ध होता है वह शरीरबन्ध होता है । तथा जीवप्रदेशोंका जीवप्रदेशों के साथ और पाँच शरीरोंके साथ जो बन्ध होता है वह शरीरिबन्ध कहलाता हैं । अब आलापनबन्ध के स्वरूपका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
संश्लेषबन्ध, शरीरबन्ध और शरीरिबन्ध ॥ ४० ॥
ता. आ. प्रत्यौः - णिज्जित्तादो' इति पाठ: ।ता. प्रतो' (लेव ) ण विसेसेण जदिदाणं' अ० आ० का० प्रतिषु 'लोयणविसेसेण जदिदाणं इति पाठः । ॐ अ. आ. प्रत्वौः 'अल्लियण' इति पाठinelibrary.org
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