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बंधणाणुयोगद्दारे दव्वबंधपरूवणा
( ३३ . __एदस्स अत्थस्स णिण्णयजणणटुमुत्तरसुत्तं भणदि-- गिद्धस्स णि ण दुरहिएण ल्हुक्खस्स ल्हुक्खेण दुराहिएण। गिद्धस्स ल्हुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ।। ३६॥ः ।
णिद्धस्स पोग्गलस्स अण्णण गिद्धपोग्गलेण जदि बंधो होदि तो दुराहिएणेव।। ल्हुक्खस्स ल्हुक्खेण जदि बंधो तो वि दुराहिएण बंधो होदि । णिद्धस्स सव्वपोग्गलस्स .. ल्हुक्खेण सव्वेण पोग्गलेण सह बंधो होदि ति भणिवे 'विसमे समे वा' । गुणाविभागपडिच्छेदेहि ल्हुक्खपोग्गलेण सरिसो णिद्धपोग्गलो समो णाम।असरिसो विसमो णाम । तत्थ णिद्ध-ल्हुक्खेण पोग्गलाणं बंधो होदि (त्ति) सव्वेसि पोग्गलाणं बंधे संपत्ते 'जहण्णवज्जे' त्ति भणि । जहण्णगणाणं गिद्ध-ल्हुक्खपोग्गलाणं सत्थाणेण परत्थाणेण वा पत्थि बंधो । एवं गणविसिटाणं पोग्गलाणं बंधो होदि, अण्णारिसाण पोग्गलाणं पुण भेदेण होदव्वं, बंधे विरुद्धगुणसमण्णिदत्तादो ।
स्निग्ध पुद्गलका दो गुण अधिक स्निग्ध पुदगलके साथ और रूक्ष पुद्गलका दो गुण अधिक रूक्ष पुद्गलके साथ बन्ध होता है। तथा स्निग्ध पुद्गल का रूक्ष पुद्गलके साथ जघन्य गुणके सिवा विषम अथवा सम गणके रहनेपर बन्ध होता है ॥३६॥
स्निग्ध पुद्गलका अन्य स्निग्ध पुद्गलके साथ यदि बन्ध होता हैं तो दो गुण अधिक स्निग्ध पुद्गलके साथ ही होता है । रूक्ष पुद्गलका अन्य रूक्ष पुद्गलके साथ यदि बन्ध होता है तो दो गुण अधिक रूक्ष पुद्गलके साथ ही होता है।
स्निग्ध सब पुद्गलका रूक्ष सब पुद्गलके साथ जो बन्ध होता है वह किस अवस्थामें होता है, ऐसा पूछनेपर 'विसमे समे वा' यह वचन कहा है गुणके अविभागप्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा रूक्ष पुद्गलके साथ सदृश स्निग्ध पुद्गल सम कहलाता है और असदृश स्निग्ध पुद्गल विषम कहलाता है । यहाँ स्निग्ध और रूक्ष गुणके द्वारा पुद्गलोंका बंध होता है, इस नियमके अनुसार सब पुद्गलोंका बन्ध प्राप्त होनेपर 'जहण्ण तज्जे' यह कहा है । जघन्यगुणवाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलोंका न तो स्वस्थानकी अपेक्षा बन्ध होता है और न परस्थानकी अपेक्षा ही बन्ध होता हैं। इस तरह इस प्रकारके गुणविशिष्ट पुद्गलोंका बन्ध होता है और अन्यादृश पुद्गलोंका भेद होता है, क्योंकि, बन्ध विरुद्ध गुणसे युक्त होना आवश्यक है।
विशेषार्थ- पुद्गल परमाणुओंके बन्धके विषयमें दो परम्परायें उपलब्ध होती हैं। प्रथम परम्पराका निर्देश यहाँ किया ही हैं। इसके अनुसार निम्न व्यवस्था फलित होती है ।
क्रमांक
विसदृशबन्ध
नहीं
गुणांश जघन्य+जघन्य जघन्य-एकादिअधिक जघन्येतर+समजघन्येतर जघन्येतर+एकाधिकजघन्येतर जघन्येतर+व्यधिकजघन्येतर
जघन्येतर-|-त्र्यादिअधिकजघन्येतर Jain Education-intenmellen
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सदृशबन्ध नहीं नहीं नहीं नहीं
Road to dis no
नहीं
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