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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
२८. ) कटु जावदिया अणुवजूत्ता भावा सो सन्वो आगमदो बज्वबंधो णाम ॥ २५ ॥
सुगममेदं, बहुसो परूवित्तादो।
जो सो णोआगमको दव्वबंधो सो दुविहो- पओअबंधी चेव विस्ससाबंधो ॥ २६ ॥
एवं णोआगमदो बंधो दुविहो चेव; अण्णस्सासंभवादो। जो सो पओअबंधो णाम सो थप्पो ॥ २७ ॥
कुदो ? बहुवणणिज्जत्तादो। जो सो विस्ससाबंधो णाम सो बुविहो-सादियविस्ससाबंधो चेव अणादियविस्ससाबंती चेव ॥ २८ ॥
एवं साहाविओ बंधो दुविहो चेव; अण्णस्स अणुवलंमादो। जो सो सादियविस्ससाबंधो णाम सों थप्पो ॥ २९ ॥
कुवो ? बहुवष्णणिदो।
लेकर जो अन्य अनुपयोग हैं उनमें द्रव्य निक्षेप रूपसे जितने अनुपयुक्त भाव हैं वह सब आगमद्रव्यबन्ध है ।। २५ ॥
__इस सूत्रका अर्थ सुगम है, क्योंकि इसका अनेक बार कथन कर आये हैं।
विशेषार्थ- यहाँ आगमके भेद और उनके उपयोगके प्रकार बतलाकर अनुपयुक्त दशाम आगमद्रव्यबन्ध कहा है । आशय यह है कि बन्धविषयक शास्त्रके जितने प्रकारके जानकार हैं और उनके उपयोग हैं वे सब जब अनुपयुक्त दशामें रहते हैं तब उनकी आगमद्रव्यबन्ध संज्ञा होती है।
जो नोआगमद्रव्यबन्ध है वह दो प्रकारका है प्रयोगवन्ध और विस्रसाबन्ध ॥२६॥ इस प्रकार नोआगमद्रव्य बन्ध दो ही प्रकारका है, क्योंकि, इसका अन्य भेद सम्भव नहीं हैं। जो प्रयोगबन्ध है वह स्थगित करते हैं ॥ २७ ॥ क्योंकि, आगे इसका बहुत वर्णन करना है ।
जो विस्रसाबन्ध है वह दो प्रकारका है-सादिविस्रसाबन्ध और अनादिविनसाबन्ध ।। २८ ॥
इस प्रकार विस्रसाबन्ध दो ही प्रकारका है, क्योंकि, इसका अन्य भेद नहीं पाया जाता। जो सादि विस्रसाबंध है वह स्थगित करते हैं ॥ २९ ॥ क्योंकि, इसका आगे बहुत वर्णन करना है।
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