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५, ६ , २४. ) बंधणाणुयोगद्दारे भावबंधपरूवणा
( २७ एदस्स अत्थो वच्चदे-पओअपरिणदखंधवण्णेहि विस्ससापरिणदखंधवण्णाणं जो संजोगो सो तदुभयपच्चइओ अजीवभावबंधो णाम । को एत्थ संबंधो घेष्पदे? संजोगलक्खणो समवायलक्खणो वा । तत्थ संजोगो दुविहो देसपच्चासत्तिकओ गुणपच्चासत्तिकओ चेदि । तत्थ देसपच्चासत्तिकओ णाम दोण्णं दवाणमवयवफासं काऊण जमच्छणं सो देसपच्चासत्तिकओ संजोगो । गुणेहि जमण्णोणाणुहरणं सो गुणपच्चासत्तिकओ संजोगो। समवायसंजोगो सुगमो। एवं सद्द-गंध-रस-फासोगाहण-संठाणगदि-खंध-खंधदेस-खंधपदेसाणं च जहासंभव दुसंजोगपरूवणा कायव्वा । सुगमं ।
जो सो थप्पो दव्वबंधो णाम सो दुविहो आगमथो दव्वबंधो चेव णोआगमदो दवबंधो चेव ।। २४ ॥
एवं दुविहो चेव दव्वबंधो, अण्णस्सासंभवादो।
जो सो आगमदो दव्वबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो-छिदं जिदं परिजिदं वायणोवगदं सुत्तसमं अत्यसमं गंथसमं णामसमं घोससम । जा तत्थ वायणा वा पुच्छणा वा पडिच्छणा वा परियट्टणा वा वणुपेहणा वा थय-थुदि-धम्मकहा वा जे चामण्णे एवमादिया अणुवजोगा दवे त्ति
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- प्रयोगपरिणत स्कन्धोंके वर्गों के साथ विस्रसापरिणत स्कन्धोंके वर्णों का जो संयोग होता है वह तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है ।
शंका-यहाँ कौनसा सम्बन्ध लिया गया है ? समाधान-संयोगसम्बन्ध और समवायसम्बन्ध दोनों लिये गये हैं।
संयोग दो प्रकारका है-देशप्रत्यासत्तिकृत संयोगसम्बन्ध और गुणप्रत्यासत्तिकृत संयोगसम्बन्ध । देशप्रत्यासत्तिकृतका अर्थ है दो द्रव्योंके अवयवोंका सम्बद्ध होकर रहना, यह देशप्रत्यासत्तिकृत संयोग है । गुणोंके द्वारा जो परस्पर एक दूसरेको ग्रहण करना वह गुणप्रत्यासत्तिकृत संयोगसम्बन्ध है । समवायसम्बन्ध सुगम है ।
इसी प्रकार शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श, अवगाहना, संस्थान, गति, स्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्धप्रदेश ; इनका यथासम्भव द्विसंयोगी कथन करना चाहिये । यह कथन सुगम है।
जो द्रव्यबन्ध स्थगित कर आये हैं वह दो प्रकारका है-आगम द्रव्यबन्ध और नोआगम द्रव्यबन्ध ॥ २४ ॥
इसप्रकार द्रव्यबन्ध दो प्रकारका ही है, क्योंकि, इसका अन्य भेद सम्भव नहीं है।
जो आगम द्रव्यबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है- स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम, और घोषसम ; इनके विषयमें वाचना, पच्छना, प्रतीच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति और धर्मकथा तथा इनसे
अ० आ० काप्रतिषु ' जो णोआगमदो' इति पाठः ।
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