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________________ २६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, २३. चंदाइच्च-गह-णक्खत्त-ताराणं भवण-विमाण-कुलसेलादीणंच जे साभाविया संठाणा ते विस्ससापरिणदा संठाणा । तेसि चेव चंदाइबिबादीणं जे खंधा ते विस्ससापरिणदा खंधा । मेहादीणं विस्ससापरिणदखधाणं जाणि खंधाणि ताणि विस्ससापरिणदा खंधदेसा । मेहिंदहण-विज्ज चंदक्कादीण जे अवयवा ते विस्ससापरिणदा खंधपदेसा । जे च इमे पुद्दिट्ठा अण्णे च एवमादिया विस्तसापरिणदा संजुत्ता भावा सो सव्वो अविवागपच्चइओ अजीवभावबंधो णाम । __ जो सो तवभयपच्चइयो अजीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो पओअपरिपदा वण्णा वण्णा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा सद्दा सद्दा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा गंधा गंधा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा रसा रसा विस्ससापरिणदा पओअपरिणवा फासा फासा विस्ससापरिणदा पओअपरिणवा गदी गदी विस्ससापरिणदा (पओअपरिणदा ओगाहणा ओगाहणा विस्ससापरिणदा) पओअपरिणदा संठाणा संठाणा विस्ससापरिणदा पओअपरिणवा खंधा खंधा विस्ससापरिणदा पओअपरिणवा खंधदेसा खंधदेसा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा खंधपदेसा खंधपदेसा विस्ससापरिणदा जे चामण्णे एवमादिया पओअ-विस्ससापरिणदा संजत्ता भावा सो सव्वो तदुभयपच्चइओ अजीवभावबंधो णाम ॥ २३ ॥ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारकाओंके तथा भवन, विमान और कुलाचल आदिके जो स्वाभाविक संस्थान होते हैं वे विस्रसापरिणत संस्थान हैं। उन्हीं चन्द्र सूर्य के बिम्ब आदिके जो स्कन्ध होते हैं वे विस्र सापरिणत स्कन्ध हैं । स्वभावसे परिणत हुए मेघादिकके स्कन्धोंके जो स्कन्ध होते हैं वे विस्रसापरिणत स्कन्धदेश हैं । मेव, इन्द्रधनुष्य, बिजली, चन्द्र और सूर्य आदिके जो अवयव होते हैं वे विस्रसापरिणत स्कन्धप्रदेश हैं। ये पूर्वोक्त और इनसे लेकर इसी प्रकारके विस्रसापरिणत और भी जो संयोगको प्राप्त हुए भाव हैं वह सब अविपाकप्रत्ययिक अजीवभावबंध हैं। जो तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबंध है उसका निर्देश इस प्रकार है--प्रयोगपरिणत वर्ण और विस्र सापरिणत वर्ण, प्रयोगपरिणत शब्द और विस्त्रसापरिणत शब्द, प्रयोगपरिणत गंध और विस्त्रसापरिणत गन्ध. प्रयोगपरिणत रस और वित्रतापरिणत रस, प्रयोगपरिणत स्पर्श और विस्रसापरिणत स्पर्श, प्रयोगपरिणत गति और विस्त्रसापरिणत गति, ( प्रयोगपरिणत अवगाहना और विस्रसापरिणत अवगाहना ) प्रयोगपरिणत संस्थान और विस्रसापरिणत संस्थान, प्रयोगपरिणत स्कन्ध, प्रयोगपरिणत स्कन्धदेश और विस्त्रसापरिणत स्कन्धदेश, प्रयोगपरिणत स्कन्धप्रदेश और विस्त्रसापरिणत स्कन्धप्रदेश; ये और इनसे लेकर प्रयोग और बिस्त्रसापरिणत जितने भी संयुक्तभाव हैं वह सब तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबंध है।२३। O आ -काप्रन्योः 'विज्जु बदक्कादीण', ताप्रती 'विज्जुचडक्कादीण' इति पाठ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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