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________________ ५५८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ७१४ - एत्थ वि-आहारसरीरस्स सुहपासो पुव्वं परूवेयवो । अथवा असुहरसगंधपासवग्गणाओ आहारसरीरागारेण परिणमंतीओ सुहरस-गंध-पासेहि परिणमंति त्ति वत्तव्वं । तेजासरीरदव्ववग्गणाओ पदेसट्टवाए अणंताणंतपदेसियाओ॥ ७७४ ॥ पंचवण्णाओ ॥ ७७५ । पंचरसाओ ॥ ७७६ ।। दोगंधाओ ॥ ७७७ ॥ सुगममेदं सुत्तचउक्कं । चदुपासाओ ॥ ७७८॥ णिद्ध ल्हुक्खाणमेक्कदरो सीदुण्हाणमेक्कदरो कक्खड-मउआणमेक्कदरो गरुअलहुआणमेक्कदरो पासो । एदम्मि खंधे पडिवक्खपासो ण होवि ति कुदो जव्वदे ? चत्तारि पासा ति णिद्देसणहाणुववत्तीदो। ___ यहां पर भी आहारकशरीरका शुभ स्पर्श पहले के समान कहना चाहिए । अथवा अशुभ रस, अशुभ गन्ध और अशुभ स्पर्शवाली वर्गणायें आहारकशरीररूपसे परिणमन करती हुई शुभ रस, शुभ गन्ध और शुभ स्पर्शरूपसे परिणमन करती हैं ऐसा यहाँ पर कहना चाहिए। तैजसशरीरकी द्रव्यवर्गणायें प्रदेशार्थताको अपेक्षा अनन्तानन्त प्रदेशवाली होती हैं ।। ७७४ ॥ वे पाँच ववाली होती हैं । ७७५ । पांच रसवाली होती हैं । ७७६ । दो गन्धवाली होती हैं । ७७७ । ये चार सूत्र सुगम हैं। चार स्पर्शवाली होती हैं । ७७८ । स्निग्ध और रूक्षमें से कोई एक, शीत और उष्णमें से कोई एक, कर्कश और मृदुमेंसे कोई एक तथा गुरु और लधुपैसे कोई एक स्पर्श होता है । शंका- इस स्कन्ध में प्रतिपक्ष स्पर्श नहीं होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है? समाधान- सूत्र में चार स्पर्शों का निर्देश अन्यथा बन नहीं सकता है, इससे जाना जाता है। * ता० प्रती ' वत्तव्वं ' इति स्थाने 'घेतव्वं ' इति पाठ: 1 *ता० प्रती - मेक्कदरो पामो' इति यावत सूत्रत्वेन निबद्धं 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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