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________________ ५, ६, ७७३ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५५७ आहारसरीरवव्ववग्गणाओ पवेसठ्ठदाए अणंताणंतपदेसियाओ ॥ ७६९ ॥ सुगमं । पंचवण्णाओ ।। ७७० ।। जदि एवाओ पंचवण्णाओ, आहारसरीरं धवलं चेवे ति कथं जुज्जदे ? ण, विस्सासुवचयस्स धवलत्तं वळूण तदुवदेसादो। पंचरसाओ ॥ ७७१ ।। एत्थ असुहरसाणं संभवे संते आहारसरीरस्स महुरतं कथं जुज्जदे ? ण, अप्पसत्थरसाणं वग्गणाणं अव्वत्तरसभावेण तत्थ महुररसुवदेसादो। दुगंधाओ ॥ ७७२ ।। एत्थ वि आहारसरीरस्स सुअंधत्तं पुव्वं व परवेयव्वं । अठ्ठपासाओ ॥ ७७३ ॥ आहारकशरीरवर्गणायें प्रदेशार्थताको अपेक्षा अनन्तानन्त प्रदेशवाली होती हैं ।।७६९॥ यह सूत्र सुगम है। वे पाँच वर्णवाली होती हैं ॥७७०॥ शंका- यदि ये पांच वर्णवाली होती हैं तो आहार शरीर धवल ही होता है यह कैसे बन सकता है समाधान- नहीं, क्योंकि, विस्रसोपचयकी धवलताको देखकर वह उपदेश दिया है। पाँच रसवाली होती हैं ॥७७१॥ ___ शंका- यहाँ अशुभ रस की सम्भावना होने पर माहारकशरीर मधुप होता है यह कैसे बन सकता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, अप्रशस्त रसवाली वर्गणाओंका अव्यक्त रस होनेसे वहां मधुर रसका उपदेश दिया गया है । दो गन्धवाली होती हैं ॥७७२।। यहाँ पर भी आहारकशरीरका सुगन्धपना पहले के समान कहना चाहिये । आठ स्पर्शवाली होती हैं ॥७७३॥ * मप्रतिपाठोऽयम् 1ता० प्रतो ' सुअंधतं परूवेयव्वं ' का० प्रती ' सुअत्तं परूवेयव्वं ' इति पाठ:1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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