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________________ ५, ६, ७८४ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५५९ भासा-मण-कम्मइयसरीरदविवग्गणाओ पदेसट्ठदाए अणंताणंतपदेसियाओ ॥ ७७९ ॥ पंचवण्णाओ ।। ७८० ॥ पंचरसाओ ॥ ७८१॥ दुगंधाओ ॥ ७८२ ॥ चदपासाओ ।। ७८३ ॥ एदेसि पंचण्णं सुत्ताणमत्थो जहा तेजासरीरस्स पंचण्णं सुत्ताणं परूविदो तहा परूवेयन्वो। एवं पदेसटुवा समत्ता। अप्पाबहुगं दुविहं- पदेसअप्पाबहुअं चेव ओगाहणअप्पा-- बहुअं चेव ॥ ७८४ ॥ पुत्वं बाहिरवग्गणाए पंचसरीरागारेण परिणदपोग्गलाणमप्पाबहुगं परविदं । संपहि पंचण्णं सरीराणं वग्गणाणं* पदेसस्स थोवबहुत्तपरूवणठें पदेसअप्पाबहुगमागदं ___ भाषाद्रव्यवर्गणाय, मनोद्रव्यवर्गणायें और कार्मणशरीरद्रव्यवर्गणायें प्रदेशार्थताको अपेक्षा अनन्तानन्त प्रदेशवाली होती हैं।। ७७९ ॥ वे पांच वर्णवाली होती हैं ॥ ७८० ।। पांच रसवाली होती हैं ।। ७८१ ॥ दो गन्धवाली होती हैं ।। ७८२ ॥ चार स्पर्शवाली होती हैं ।। ७८३ ।। तैजसशरीरके पाँच सूत्रोंका अर्थ जिस प्रकार कहा है उस प्रकार इन पाँच सूत्रोंका अर्थ कहना चाहिये। ___ इस प्रकार प्रदेशार्थता समाप्त हुई। अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-प्रदेशअल्पबहुत्व और अवगाहना अल्पबहुत्व ।७८४। पहले बाह्य वर्गणा अनुयोगद्वारमें पाँच शरीररूपसे परिणत हुए पुद्गलोंका अल्पबहुत्व कहा है। अब पाँच शरीरोंकी वर्गणाओंके प्रदेशोंके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए * ता० प्रती ' सरीराणं च वग्गणाणं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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