SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 588
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५५५ काओचि पीदवण्णाओ काओचि करंबियवण्णाओ, तेणेदाणं पंचवण्णत्तं जुज्जवे । जदि एवं तो ओरालियसरीरवग्गणाए एक्कतीसवण्णभेदा पावेंति ? ण, पंचवण्णेहि एयंतेण पुधभूदसंजोगाभावादो । पंचरसाओ ॥ ७६१ ।। ओरालियसरीरवग्गणासु तित्त-कडअ-कसायंविल-महुरभेदेण पंच रसा होति । एदे पंच वि रसा एक्केक्कपरमाणुम्हि जुगवं ण होंति, किंतु कमेण होति। वग्गणासु पुण अक्कमेण कमेण वि होंति, अणंताणंतपरमाणणं समदयसमागमेण समुप्पण्णवग्गणासु पंचवण्णाणं व पंचरसाणमक्कमेण वृत्तीए विरोहाभावादो। एत्थ वि एक्कतीसं रसभेदा परूवेदव्वा । दुगंधाओ ।। ७६२ ।। सुरहिगधो दुरहिगंधो त्ति बे चेव गंधभंगा संखेवेण । विसेसदो पुण सुरहिगंधो दुरहिगंधो वि अणेयविहो, जाइ-केयइ मालियादिफुल्लेसु अणेयगंधुवलंभादो। एदेहि दोहि गंधेहि ओरालियपरमाण कमेण संजत्ता होंति, वग्गणाओ पुण अक्कमक्कमेहि कुछ कृष्णवर्णवाली होती है, कुछ नीलवर्णवाली होती हैं, कुछ पीतवर्णवालो होती हैं और कुल मिश्रवर्णवाली होती हैं इसलिए इनके पाँच वर्ण बन जाते हैं। शंका-- यदि ऐसा है तो औदारिकशरीरवर्गणाके इकतीस वर्णके भेद प्राप्त होते हैं? समाधान-- वहीं, क्योंकि, पाँच वर्णसे संयोगी भेद सर्वथा पृथग्भूत नहीं होते । पाँच रसवाली होती हैं । ७६१।। औदारिकशरीर वर्गणाओंमें तिक्त, कटुक, कषाय, आम्ल और मधुरके भेदसे पाँच रस होते होते हैं । ये पांचों रस एक एक परमाणु में एक साथ नहीं होते हैं किन्तु क्रमसे होते हैं। परन्तु वर्गणाओं में अक्रमसे होते हैं और क्रमसे भी होते हैं, क्योंकि, अनन्तानन्त परमाणुओंके समुदयसमागमसे उत्पन्न हुईं वर्गणाओंमें पाँच वर्गों के समान पाँच रसोंकी अक्रमसे वृत्ति होने में कोई विरोध नहीं है। यहाँ पर भी इकतीस रसके भेद कहने चाहिए। _ विशेषार्थ-- रसके मूल भेद पाँच हैं, इसलिए प्रत्येक भेद पाँच हुए। इन पाँचोंके द्विसंयोगी भेद दस होते हैं, त्रिसंयोगी भेद भी दस होते हैं, चतुःसंयोगी भेद पाँच होते हैं और पाँचसंयोगी भेद एक होता है । इस प्रकार कुल भेद इकतीस होते हैं। पाँच वर्गों के इकतीस भेद इसी प्रकार ले आने चाहिए। दो गन्धवाली होती हैं। ७६२ ।। सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध इस प्रकार संक्षेपसे गन्धके भग दो ही हैं। विशेषकी अपेक्षा तो सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध अनेक प्रकार का होता है, क्योंकि, जाति, केतकी और नेमाली आदि फूलोंमें अनेक प्रकारकी गन्ध उपलब्ध होती हैं। इन दो प्रकार की गन्धोंसे औदारिक परमाणु क्रमसे संयुक्त होते हैं। परन्तु वर्गणायें क्रमसे और अक्रमसे संयुक्त होती हैं, क्योंकि Jain Education Internatenal www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy