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________________ ५, ६, ७०३ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया एसा उवरि होदि ति भणिदं होदि । तदो दसवाससहस्साणि गंतूण ओववादियस्स जहणिया पज्जत्तणिवत्ती ॥ ७०१ ॥ तदो इदि वृत्ते उप्पण्णपढमसमयादो त्ति घेत्तव्वं, अण्णहा दसवाससहस्साणुववत्तीदो। ओववादिया त्ति वृत्ते देव-रइयाणं गहणं कायव्वं । तदो बावीसवाससहस्साणि गंतण एइंदियस्स उक्कस्सिया पज्जत्तणिवत्ती ॥ ७०२ ।। एइंदियस्स बंधेण जहणिया पज्जत्तणिवत्ती अंतोमुत्तमेत्ता होदि। पुणो एदिस्से उरिमसमउत्तरादिकमेण सुहम-बादरणिगोदपदिद्विदपज्जत्ताणमावलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि पिल्लेवणढाणाणि सम्मुच्छिम-गभोवक्कंतिय-ओववादियसम्वजहण्णपज्जत्तणिवत्तीओ च बोलेऊण बादरपुढविकाइयपज्जत्तयस्स बावीसवाससहस्समेत्ता बंधेण उक्कस्सिया णिवत्ती होदि । तदो पुवकोडि गंतूण समुच्छिमस्स उक्कस्सिया पज्जत्त -- णिवत्ती ॥ ७०३ ॥ यह आगे चलकर होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। फिर दस हजार वर्ष जाकर औपपादिक जीवकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति होती है । ७०१ । _ 'तदो' ऐसा कहनेपर उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर यह अर्थ लेना चाहिए, अन्यथा दस हजार वर्ष नहीं बन सकते हैं । ' ओववादिया ' ऐसा कहनेपर देवों और नारकियोंका ग्रहण करना चाहिए। फिर बाईस हजार वर्ष जाकर एकेन्द्रिय जीवकी उत्कृष्ट पर्याप्त निर्वृत्ति होती है । ७०२। एकेन्द्रियकी बन्ध की अपेक्षा जघन्य पर्याप्तनिर्वृत्ति अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होती है । पुनः इसके ऊपर एक समय अधिक आदिके क्रमसे सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थानोंको तथा सम्मच्छिम, गर्भोपक्रान्त और औपपादिकोंके सबसे जघन्य पर्याप्त निर्वत्तियोंको बिताकर बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तककी बन्धकी अपेक्षा बाईस हजार वर्षप्रमाण उत्कृष्ट पर्याप्त निर्वृत्ति होती है। फिर पूर्वकोटि जाकर सम्मच्छिम जीवको उत्कृष्ट पर्याप्त निर्वृत्ति होती है ।७०३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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