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________________ ५३८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड पच्छारंभो किमळं कौ? पुन्विल्लजवमज्झादो उरि गंतूण एदं जवमझं समत्तं त्ति जाणावणळं कदो। तदो अंतोमुहत्तं गंतूण एइंदियस्स जहणिया पज्जत्तणिवत्ती ॥ ६९८ ॥ एवं भणिदे बंधेण सुहमणिगोदपज्जत्तयस्स जहग्णाउअं घेतव्यं, अण्णस्त असंभावादो। तदो अंतोमुहत्तं गंतूण सम्मुच्छिमस्स जहणिया पज्जत्तणिवत्ती ॥ ६९९ ॥ एवं भणिदे उप्पण्णपढमसमयप्पहुडिमंतोमुत्तमेतमद्धाणमुवरि गंतूग पंचिदियसम्मुच्छिमस्स बंधण जहण्णाउ घेत्तव्वं । तदो अंतोमुहत्तं गंतूण गब्भोवक्कंतियस्स जहणिया पज्जतणिवत्ती ।। ७०० ।। उप्पण्णपढमसमयप्पहुडिमंतोमहुत्तमेत्तमद्धाणमवरि गंतूण बंधेण गब्भोवक्कतियस्स पज्जत्तयस्स* जहणिया पज्जत्तणिवत्ती होदि । सम्मच्छिमजहण्णपज्जत्तणिवत्तीदो समाधान-- पहलेके यवमध्यके ऊपर जाकर यह यवमध्य समाप्त होता है इस बातका ज्ञान कराने के लिए बादमें इस सूत्रका आरम्भ किया है । उसके बाद अन्तर्मुहर्त जाकर एकेन्द्रियको जघन्य पर्याप्तनिवृत्ति होती है ।६९८। ऐसा कहने पर बन्ध से प्राप्त सूक्ष्म निगोद पर्याप्त की जघन्य आयु लेनी चाहिए क्योंकि, अन्यकी आय लेना असम्भव है। फिर अन्तर्मुहूर्त जाकर सम्मच्छिमकी जघन्य पर्याप्तनिर्वृत्ति होती है । ६९९ । ऐसा कहने पर उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहुर्त प्रमाण अध्वान ऊपर जाकर पञ्चेन्द्रियसम्मच्छिमकी बन्धसे प्राप्त जघन्य आयु लेनी चाहिए । फिर अन्तर्मुहर्त जाकर गर्भोपक्रान्त जीवकी जघन्य पर्याप्त निर्वत्ति होती है । ७००। उत्पन्न होने के पहले समयसे लेकर अन्तर्मुहुर्तमात्र अध्वान ऊपर जाकर बन्धसे गर्भोपक्रान्त पर्याप्त जीवकी जघन्य पर्याप्तनिर्वृत्ति होती है। सम्मच्छिमकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे * का० प्रती सूत्रानन्तरं ' एवं भणिदे उप्पण्णपढ मसमयप्पहु डिमंतोमुत्तमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूण पंचि दियसम्मच्छिमस्स बंधेण गब्भोवक्कंतियस्स जत्तयस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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