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२४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, २२. हलिद्दचुण्णजोगेण पूअफल-पण्णचुण्णसंजोगेण वा जणिदवण्णा वि पओअपरिणदा णाम। संख-वीणा-वंस भेरी-पटह-झल्लरी-मुइंगसद्दा कंठोट्ठादिजणिदसद्दा च पओअपरिणदात्ति भण्णंते । गंधजत्तिसस्थवत्तविहाणेण जणिदगंधा पओअपरिणदा णाम । सूअसत्थ उत्तविहाणेण जणिदरसा पओअपरिणदा रसा णाम रसणामकम्मणिदरसा वा। फासणा. मकम्मोदयजणिदट्टफासा पओअपरिणदा णाम रूवादिपासा वा। कंड-सेल्ल-जंतगोफण-वत्थरादोणं गई पओअपरिणदा । कट्टिमजिणभवणादीणमोगाहणा पओअपरि. णदा। कट्ट-सिला-थंभ-तुलादीणं कट्टिमाणं संठागा पओअपरिणदा। घड-पिढर-रंजणादीणं पि कट्टिमाणं खंधा पओअपरिणदा। पओअपरिणदाणं खंधाणमद्धं तिभागो का पओअपरिणदा खंधदेसा। पओअपरिणदाणं खंधाणं भेदं गदाणं चदुब्भागो पंचमभागो वा पओअपरिणदा खंधपदेसा। जे च अमी अण्णे च एवमादिया पओअपरिणदा संजुत्ता भावा सो सव्वो विवागपच्चइओ अजीवभावबंधो गाम ।
जो सो अविवागपच्चइओ अजीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- विस्ससापरिणदा वण्णा विस्ससापरिणवा सद्दा विस्ससापरिणदा गंधा विस्ससापरिणवा रसा विस्ससापरिणदा फासा विस्ससा
या हलदीके और चुनेके योगसे अथवा पूगफल और पर्णचूर्णके योगसे उत्पन्न हुए वर्ण भी प्रयोगपरिणत वर्ण हैं । शंख, वीणा, बाँस, भेरी, पटह. झालर और मृदंगके शब्द और कण्ठ, ओष्ठ आदिसे उत्पन्न हुए शब्द भी प्रयोगपरिणत शब्द हैं । गन्ध बनानेकी युक्ति का कथन करनेवाले शास्त्रमें जो विधि कही है उसके अनुसार उत्पन्न किये गये गन्ध प्रयोगपरिणत गन्ध हैं। भोजनशास्त्र में कही हुई विधिके अनुसार उत्पन्न किये गये रस प्रयोगपरिणत रस हैं या रस नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुए रस प्रयोगपरिणत रस हैं । स्पर्श नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुए आठ प्रकारके स्पर्श प्रयोगपरिणत स्पर्श हैं, अथवा रुई आदिमें सस्कारसे जो आठ प्रकारके स्पर्श उत्पन्न किये जाते हैं वे प्रयोगपरिणत स्पर्श हैं।
लकडी, शैल, यन्त्र, गोफन और पत्थर आदिकी गति प्रयोगपरिणत गति है । कृत्रिम जिनभवन आदिकी अवगाहना प्रयोगपरिणत अवगाहना है । बनाये गये काष्ठ, शिला, स्तम्भ और तराजू आदिके आकार प्रयोगपरिणत संस्थान हैं। बनाये गये घट, पिढर और रांजन आदिके भी स्कन्ध प्रयोगपरिणत स्कन्ध हैं। प्रयोगपरिणत स्कन्धोंका चौथा भाग या तृतीय भाग प्रयोगपरिणत स्कन्धदेश हैं और भेदको प्राप्त हुए प्रयोगपरिणत स्कन्धोंका चौथा भाग या पाँचवाँ भाग प्रयोगपरिणत स्कन्धप्रदेश हैं। ये या इनसे लेकर इसी प्रकारके प्रयोगपरिणत जो दूसरे भी संयुक्त भाव हैं वह सब विपाकप्रत्ययिक अजीव भावबन्ध हैं।
जो अविपाकप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है-विस्रसापरिणत वर्ण, विस्रसापरिणत शब्द, विस्रसापरिणत गन्ध, विस्त्रसापरिणत रस, विस्त्रसा
० अ-आ- काप्रतिषु 'रूवा का पशा वादिपासा' इति पाठ: 1 Jain Education International
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