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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ६९१ तम्हि चेव पत्तेयसरीरपज्जत्तयाणं पिल्लेवणट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ ६९१ ॥ तम्हि चेवे ति णिद्देसो किमट्ठ कीरदे? बादरणिगोदाणमाधारभूदपत्तेयसरीर पज्जत्तजीवग्गहणठें। कुदो ? बादरणिगोदपदिद्विदाणमक्कस्सआउअस्स वि पमाणमंतोमहुत्तमेत्तं चेवे ति गरूवदेसादो । उप्पण्णसमयप्पडि बंधेण सव्वजहण्णाउअमेत्तमद्धाणं गंतूण पत्तेयसरीरपज्जत्तयस्स एयमाउअणिवत्तिद्वाणं होदि । एवं समउतरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तआउअणिल्लेवणटाणाणि उवरि गंतूण बंधेण पत्तेयसरीरपज्जत्तयस्स बादरणिगोदपदिट्टिदस्स उक्सस्साउणिव्वत्तिट्ठाण होदि । एदेसि पिल्लेवणटाणाणं थोवबहुत्तपरूवणसुतरसुत्तमागयं । एत्थ अप्पाबहुगं-- सव्वत्थोवाणि सुहमणिगोदजीवपज्जत्तयाण पिल्लेवणठ्ठाणाणि ।। ६९२ ॥ कुदो ? आवलियाए असंखेज्जविभागपमाणत्तादो । बादरणिगोवजीवपज्जत्तयाणं पिल्लेवणट्ठाणाणि विसेसा-- हियाणि ॥ ६९३ ॥ वहीं पर प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंके निपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ।। ६९१ ।। शंका-- 'तम्हि चेव' ऐसा निर्देश किसलिए करते हैं ? समाधान-- बादर निगोदोंके आधारभूत प्रत्येक शरीर पर्याप्तकोंके ग्रहण करने के लिए उक्त निर्देश किया है, क्योंकि, बादर निगोद प्रतिष्ठितोंकी उत्कृष्ट आयुका प्रमाण भी अन्तर्मुहूर्त ही है ऐसा गुरुका उपदेश है। उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर बन्धसे प्राप्त सबसे जघन्य आयुमात्र अध्वान जाकर प्रत्येकशरीर पर्याप्तका एक आयुनिर्वत्तिस्थान होता है। इस प्रकार एक समय अधिक आदिके क्रम से आलिके असंख्यातवें भागप्रमाण आयुनिर्लेपनस्थान ऊपर जाकर बन्धसे बादर निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर पर्याप्तका उत्कृष्ट आयुनिर्वत्तिस्थान होता है। इन निर्लेपनस्थानोंके अल्पबहत्वका कथन करने के लिए आगे सत्र आया है-- यहां पर अल्पबहुत्व- सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान सबसे थोडे हैं ।। ६९२॥ क्योंकि, वे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६९३ ।। ता० प्रती सूत्रमिदं सूत्रत्वेनोल्लिखितम् ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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