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________________ ५, ६, ६९० ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५३५ होदूण गच्छंति जाव सुहमणिगोदपज्जत्तमरणजवमज्झचरिमसमओ त्ति । तेण परं विसेसहीणा जाव बादरपज्जत्तमरणजवमज्झचरिमसमओ त्ति । तदो अंतोमुहत्तं गंतूण सुहमणिगोदपज्जत्तयाणं विल्लेवणट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्ताणि ॥६८९।। उप्पण्णपढमसमयप्पडि अंतोमहत्तमवरि गंतूग सुहमणिगोदजीवपज्जत्ताणं बंधेण जहण्णाउअं होदि । तमेग णिल्लेवणट्टाणं । एवम्हादो समउत्तराआउअं बिदियणिल्लेवणटाणं । एवं समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तणिल्लेवणढाणाणि लग्भंति । तत्थेव सुहमणिगोदपज्जत्ताणमुक्कस्साउअं होदि। तदो अंतीमुहत्तं गंतून बादरणिगोदपज्जत्तयाणं पिल्लेवणट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥६९०॥ उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि अंतोमहत्तमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूण बादरणिगोदपज्जताणं बंधेण जहण्णाउअं होदि । तमेगं पिल्लेवणटाणं । समउत्तरेपबद्धेबिदियं पिल्लेवणटाणं । एवं विसमउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेतणिल्लेवणट्ठाणाणि उवरि गंतूण बादरणिगोदपज्जत्ताणं उक्कस्साउअणिल्लेवणढाणं होदि । तत्थेव बादरणिगोदपज्जत्ताणमुक्कस्साउअं होदि त्ति घेत्तव्वं । जीव मरते हैं। उसके बाद सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंके मरणयवमध्यके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष हीन होकर जीव जाते हैं । उसके बाद बादर निगोद पर्याप्तकोंके मरणयवमध्यके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक विशेष हीन होकर जीव जाते हैं । उसके बाद अन्तर्मुहर्त जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंके निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं । ६८९ ॥ उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहुर्त ऊपर जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंकी बन्धसे जघन्य आयु होती है । वह एक निर्लेपनस्थान है । इससे एक समय अधिक आयु दूसरा निर्लेपनस्थान है। इस प्रकार एक समय अधिक आदिके क्रम में आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान प्राप्त होते हैं। वहीं पर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट आयु होती है। उसके बाद अन्तर्मुहर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ।। ६९० ।। उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अध्वान ऊपर जाकर बादर निगोद पर्याप्तकोंकी बन्धसे जघन्य आयु होती है । वह एक निर्लेपनस्थान हैं । एक समय अधिक आयुका बन्ध होने पर दूसरा निलेपनस्थान होता है। इस प्रकार दो समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान ऊपर जाकर बादर निगोद पर्याप्तकोंका उत्कृष्ट आयु निर्लेपनस्थान होता है । तथा वहीं पर बादर निगोद पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट आयु होती है ऐसा यहां पर ग्रहण करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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