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________________ ५२० ) छक्खंडागमे वग्पणा-ख ( ५, ६, ६६८ _____ ओरालिय--वेउम्विय--आहारसरीराणं जहाकम विसेसाहियाणि ।। ६६८ ॥ तं जहा-ओरालियसरीरउक्कस्सणिव्वत्तिट्टाणादो सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमेत्तमद्धाणं गंतूण आहारसरीरस्स सव्वजहणमिदियणिवत्तिटाणं होदि । तदो समउत्तरदुसमउत्तरादिकमेण आवलि. असंखे०भागमेत्तेसु आहार-सरीरिदियणिव्वत्तिटाणेसु गदेसु तदो वेउब्वियसरीरस्स सव्वजहणमिदियणिव्वत्तिट्ठाणं होदि । एत्तो प्पहुडि वेउम्विय-आहारसरीराणमिदियणिव्वत्तिद्वाणाणि आवलि. असंखे० भागमेत्ताणि समउत्तर-दुसमउत्तरादिकमेण उवरि गंतूण तदो ओरालियसरीरस्स सव्वजहणमिदियणिव्वत्तिट्ठाणं होदि । पुणो ओरालिय वे उब्धिय-आहारसरीराणं सम उत्तर-दुसमउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु इंदिणिव्वत्तिट्ठाणेसु उवरि गदेसु आहारसरीरस्स सव्वक्कस्समिदियणिव्वत्तिट्टाणं थक्कदि । पुणो तदणंतरउवरिमसमय पहुडि समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु ओरालियसरीर-वे उब्वियसरीराणमिदियणिव्वत्तिट्टाणेसु गदेसु वेउब्वियसरीरस्त सव्वक्कमिदियणिवत्तिट्टाणं थक्कदि। तको उवरि समउत्तर-दुसमउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु ओरालियसरीरस्स इंदियणिव्वत्तिदाणेसु गदेसु सव्वक्कस्समोरालियसरीरस्स इंदियणिवत्तिट्टाणं थक्कदि । तेणेदाणि अण्णोण्णं पेक्खि दूण जहाकमेण विसेसाहियाणि ति सिद्धं । एदस्सेव ये इन्द्रियनिर्वत्तिस्थान औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके क्रमसे विशेष अधिक हैं।। ६६८ । यथा- औदारिकशरीरके उत्कृष्ट निर्वत्तिस्थानसे सबसे जघन्य अन्तर्मुहुर्तमात्र अध्वान जाकर आहारकशरीरका सबसे जघन्य इन्द्रियनिर्वत्तिस्थान होता है। उससे एक समय अधिक और दो समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण आहारकशरीर सम्बन्धी इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थानोंके जानेपर वैक्रियिकशरीरका सबसे जघन्य इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान होता है । उससे आगे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अध्वान होने तक समय अधिक और दो समय अधिक आदिके क्रमसे ऊपर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके इन्द्रिय निर्वृत्तिस्थान जाकर उसके आगे औदारिकशरीरका सबसे जघन्य इन्द्रियनिर्वत्तिस्थान होता है। पुनः औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके एक समय अधिक और दो समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण इन्द्रियनिर्वत्तिस्थानोंके ऊपर जानेपर आहारकशरीरका सबसे उत्कृष्ट इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । पुन: उसके आगे उपरिम समयसे लेकर एक समय अधिक आदिके क्रमसे औदारिकशरीर और वैक्रियिकशरीरके इन्द्रियनिर्वत्तिस्थानोंके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानेपर वैक्रियिकशरीरका सबसे उत्कृष्ट इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान प्रान्त होता है। उसके आगे औदारिकशरीर इन्द्रियनिर्वत्तिस्थानोंके एक समय अधिक, दो समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होने पर औदारिकशरीरका सबसे उत्कृष्ट इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है। इसलिए इन्हें परस्पर देखते हुए ये यथाक्रमसे विशेष अधिक Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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