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________________ ५, ६, ६७२) बंघणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५२१ सुत्तस्स णिण्णयटमृत्तरसुत्तं भणदि-- एत्थ अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स इंदियजिव्वत्तिट्ठाणाणि ॥ ६६९ ॥ ___ कुदो ? साहावियादो। ण च सहावो परपज्जणियोगारहो, अव्ववत्थावत्तीदो। वेउव्वियसरीरस्स इंदियणिवत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।६७०। केत्तियमेत्तेण ? आवलि० असंखे०भागमेतेण । ओरालियउवरिमइंदियणिव्वत्तिट्टाणेहि ऊणवेउवियहेट्टिमइंदियणिव्वत्तिट्टाणेहि विसेसाहियाणि । एदमत्थपदमुवरि सव्वत्थ वत्तव्वं । आहारसरीरस्स इंदियणिवत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६७१ । केत्तियमेतेण ? आवलि० असंखे०भागमेत्तेण । तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तिण्णं सरीराणं आणापाण-भासामणणिवत्तिटठाणाणि आवलि० असंखे०भागमेत्ताणि ।। ६७२ ॥ ओरालियसरीरस्स उक्कस्सइंदियणिवत्तिढाणादो उवरि अंतोमहुत्तमेत्तमद्वाणं गंतूण ओरालिय वेउन्विय आहारसरीराणमाणावाणणिवत्तिटाणाणि आवलि. हैं यह सिद्ध हुआ। अब इसी सूत्रका निर्णय करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं यहाँ अल्पबहुत्व-औदारिकशरीरके इन्द्रियनिर्वत्तिस्थान सबसे थोडे हैं।६६९। क्योंकि, ऐसा होना स्वाभाविक है । और स्वभाव दूसरेके प्रश्न के योग्य नहीं होता, क्योंकि, ऐसा होनेपर अव्यवस्थाकी आपत्ति आती है। वैक्रियिकशरीरके इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥६७०।। कितने अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है । वैक्रियिकशरीरके अधस्तन इन्द्रियनिर्वत्तिस्थानोंमेंसे औदारिकशरीरके उपरिम इन्द्रियनिर्वत्तिस्थानोंका कम कर देने पर जितने शेष रहते हैं उतने अधिक होते हैं । यह अर्थपद आगे सर्वत्र कहना चाहिए । आहारकशरीरके इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥६७१।। कितने अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक हैं। उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके आनापान, भाषा और मननिर्वत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ।। ६७२।। औदारिक शरीरके उत्कृष्ट इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थानसे ऊपर अन्तर्मुहुर्त अध्वान जाकर औदारिक शरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके आनापाननिर्वत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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