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________________ बंधणाणुयोगद्दारे भावबंधपरूवणा ( २१ उदयपच्चइयत्तं घडदे, मदिणाणावरणीयस्स देसधादिफयाणमुदएण समुप्पत्तीए । गोवसमियपच्चइयत्तं, उवसमाणवलंभादो? ण, णाणावरणीयसव्वधादिफद्दयाणमुदयाभावेण उवसमसण्णिदेण आभिणिबोहियणाणप्पत्तिदसणादो । एवं सुदणाणि ओहिणाणि मणपज्जवणाणि-चक्खुदंसणि-अचक्खुदंसणि-ओहिदंसणिआदीणं वत्तव्वं, विसेसाभावादो। सम्मामिच्छत्तलद्धि त्ति खओवसमियं, सम्मामिच्छत्तोदयजणिदत्तादो । सम्मामिच्छत्तफद्दयाणि सव्वघादीणि चेव, कधं तदुदएण समुप्पण्णं सम्मामिच्छत्तं उभयपच्चइयं होदि? ण, सम्मामिच्छ तफहयाणमुदयस्स सव्वघादित्ताभावादो । तं कुदो णव्वदे? तत्यतणसम्मत्तस्सुप्पत्तीए अण्णहाणुववत्तीदी। सम्मामिच्छत्तदेसघादिफद्दयाणमुदएण तस्सेव सव्वघादिफद्दयाणमुदयाभावेण उवसमसण्णिदेण सम्मामिच्छत्तमुपज्जदि त्ति तदुभयपच्चइयत्तं । (सम्मत्तलद्धि त्ति खओवसमियं, सम्मत्तोदयजणिदत्तादो। सम्मत्तफद्दयाणि देसघादीणि चेव, कधं तदुदएण समुप्पण्णं उभयपच्चइयं होदि? ) ण,सम्मत्त शंका- आभिनिबोधिकज्ञानके उदयप्रत्ययिकपना बन जाता है, क्योंकि, मतिज्ञानावरण कर्मके देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे इसकी उत्पत्ति होती है। पर औपशमिकनिमित्तकपना नहीं बनता, क्योंकि, मतिज्ञानावरण कर्मका उपशम नहीं पाया जाता ? समाधान- नहीं, क्योंकि, ज्ञानावरणीय कर्मके सर्वधाति स्पर्धकोंके उपशम संज्ञावाले उदयाभावसे आभिनिबोधिक ज्ञानकी उत्पत्ति देखी जाती है. इसलिये इसका औपशमिकनिमित्तकपना भी बन जाता है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी आदिका कथन करना चाहिये, क्योंकि, उपर्युक्त कथनसे इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्व लब्धि क्षायोपशमिक है, क्योंकि, वह सम्यग्मिथ्यात्वके उदयसे उत्पन्न होती है। शंका- सम्यग्मिथ्यात्व कर्मके स्पर्धक सर्वघाति ही होते हैं, इसलिये इनके उदयसे उत्पन्न हुआ सम्यग्मिथ्यात्व उभयप्रत्ययिक कैसे हो सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व कर्मके स्पर्धकोंका उदय सर्वघाति नहीं होता। शंका- वह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व में सम्यक्त्वरूप अंशकी उत्पत्ति अन्यथा बन नहीं सकती। इससे मालूम पडता है कि सम्यग्मिथ्यात्व कर्मके स्पर्धकोंका उदय सर्वघाति नहीं होता। सम्यग्मिथ्यात्वके देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे और उसीके सर्वघाति स्पर्धकोंके उपशम संज्ञावाले उदयाभावसे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्पत्ति होती है, इसलिये वह तदुभयप्रत्ययिक कहा गया है । सम्यक्त्वलब्धि क्षायोपशमिक है, क्योंकि, वह सम्यक्प्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होती है। शंका- सम्यक्प्रकृतिके स्पर्धक देशघाति ही होते हैं । उसके उदयसे उत्पन्न हुआ सम्यक्त्व उभयप्रत्ययिक कैसे हो सकता है ? ताप्रत्तो 'ण, ( सम्मत्तलद्धित्ति तदुययपच्चइयत्तं ), सम्मत्तं-'इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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