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________________ २०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ___एदस्स सुत्तस्स अत्थो उच्चदे । तं जहा-एत्थ सव्वे वा-सद्दा समुच्चयठे दढव्या। एइंदियलद्धि त्ति एदं च खओवसमियं, पातिदियावरणखओवसमेण समुप्पत्तीए । बेई. दियलद्धि त्ति एवं पि खओवसमियं, फांसिदियावरणक्खओवसमेण समुप्पत्तीए । तीइंदियलद्धि त्ति एदं च खओवसमियं, जिब्भा फास-घाणिदियावरणाणं खओवसमेण समुप्पत्तीए । चरिदियलद्धि त्ति एवं च खओवस मियं, जिब्भा-कास-घाण- चक्खिदियावरणाणं खओवसमेण समप्पत्तीए। पचिदियलद्धि त्ति एवं च खओवसमियं, पंचामदियावरणाणं खओवसमेण समप्पत्तीए । मदिअण्णागि ति एवं पि खओवसमियं, मदिणाणावरणखओवसमेण समुप्पत्तीए । कुदो एदं मदिअप्णात्तिं तदुभयपच्चइयं ? मिच्छत्तस्स सव्वघादिफयाणमुदएण णाणावरणीयस्स देसघादिफयाणमुदएण तस्सेव सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण च मदिअण्णाणित्तप्पत्तीदो । सुदअग्णाणि त्ति तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो, सुदणाणावरणस्स देसघादिफद्दयाणमुदएण मिच्छत्तोदयाणुविद्धण समुप्पत्तीदो । विहंगणाणि ति तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो, ओहिणाणावरणदेसघादिफद्दयाणमदएण मिच्छताणविद्धे ग समुप्पत्तीदो । आभिणिबोहियणाणाणि त्ति तदुभयपच्चइओ जीवभावबंधो, मदिणाणाणावरणीयस्स देसघादिफद्दयाणमुदएण तिविहसम्मत्तसहाएण तदुप्पत्तीदो । आभिगिबोहियणाणस्स अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । यथा-इस सूत्रमें सब 'वा' शब्द समुच्चयरूप अर्थमें जानने चाहिये। एकेन्द्रियलब्धि यह भी क्षायोपशमिक है, क्योंकि, वह स्पर्शनइन्द्रियावरण कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न होती है। द्वीन्द्रियलब्धि यह भी क्षायोपशमिक है, क्योंकि, वह जिह वा और स्पर्शन इन्द्रियावर ण वर्मोंके क्षयोपशमसे उत्पन्न होती है । त्रीन्द्रियलब्धि यह भी क्षायोपशमिक है, क्योंकि, यह जिह वा, स्पर्शन और ध्राण इन्द्रियावरण कर्मोंके क्षयोपशमसे उत्पन्न होती है। चतुरिन्द्रियलब्धि यह भी क्षायोपशमिक है, क्योंकि, यह जिह वा, स्पर्शन, घ्राण और चक्षु इन्द्रियावरण कर्मोके क्षयोपशमसे उत्पन्न होती है। पचेन्द्रियलब्धि यह भी है पशमिक है, क्योंकि, यह पाँचों इन्द्रियावरण कर्मोके क्षयोपशमसे उत्पन्न होती है । मत्यज्ञानी यह भी क्षायोपशमिक है, क्योंकि, यह मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न होता है । शका- यह मत्यज्ञानित्व तदुभयप्रत्ययिक कैसे है ? समाधान- मिथ्यात्वके सर्वघाती स्पर्धकोंका उदय होनेसे तथा ज्ञानावरणीयके देशघाति स्पर्धकोंका उदय होनेसे और उसीके सर्वघाति स्पर्धकोंका उदयक्षय होनेसे मत्यज्ञानित्वकी उत्पत्ति हाता है, इसलिये वह तदुभयप्रत्ययिक है। श्रुतज्ञानी तदुभयप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि, यह मिथ्यात्व कर्मके उदयसे युक्त श्रुतज्ञानावरण कर्मके देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे उत्पन्न होता है। विभंगज्ञानी तदुभयप्रत्ययिक जीवभावबन्ध हैं, क्योंकि, मिथ्यात्वसे युक्त अवधिज्ञानावरण कर्मके देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे इसकी उत्पत्ति होती है । आभिनिबोधिकज्ञानी तदुभयप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि, तीन प्रकारके सम्यक्त्वसे युक्त मतिज्ञानावरणीय कर्मके देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे इसकी उत्पत्ति होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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