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५, ६, १९. )
गद्दारे भावबंधपरूवणा
( १९
पज्जवणाणि त्ति वा खओवसमियं चक्खुदंसणि त्ति वा खओवसमियं अचक्खुवंसणि ति वा खओवसमियं ओहिदंसणि त्ति वा खओवसमियं सम्मामिच्छत्तलद्धि त्ति वा खओवसमियं सम्मत्तलद्धि त्ति वा खओवसमियं संजमा संजमलद्धि त्ति वा खओवसमियं संजमलद्धित्ति वा खओवसमियं दाणलद्धित्ति वा खओवसमियं लाहलद्धि त्ति वा खओवसमियं भोगलद्धि त्ति वा खओवसमियं परिभोगलद्धि त्ति वा खओवसमियं वीरियलद्धित्ति वा खओवसमियं से आयारधरे त्ति वा खओवसमियं सूदयडधरे त्ति वा खओवसमियं ठाणधरे त्ति वा खओवस मियं समवायधरे त्ति वा खओवसमियं वियाहपण्णत्तधरे त्ति वा खओवसमियं णाहधम्मधरे ति वा खओवसमियं उवासयज्झेंणधरे त्ति वा खओवसमियं अंतयडधरे त्ति वा खओवसमियं अणुत्तरोववादियदसधरे त्ति वा खओवसमियं पण्णवागरणधरे त्ति वा खओवसमियं विवाग सुत्तधरे त्ति वा खओवसमिमं विट्टिवादधरे त्ति वा खओवसमियं गणित वा ओवसमियं वाचगे त्ति वा खाओवसमियं वसपुण्वहरे त्ति वा हाओवसमियं चोहसपुण्वहरे सिवा जे चामण्णे एवमादिया खओवसमियभावा सो सव्वो तदुभयपच्चइओ जीवभावबंधो णाम । १९।
ज्ञानी, क्षायोपशमिक चक्षुदर्शनी, क्षायोपशमिक अचक्षुदर्शनी, क्षायोपशमिक अवधिदर्शनी, क्षायोपशमिक सम्यरिथ्यात्वलद्धि, क्षायोपशमिक सम्यक्त्वलब्धि, क्षायोपशमिक संयमासंयमलब्धि, क्षायोपशमिक संयमलब्धि, क्षायोपशमिक दानलब्धि, क्षायोपशमिक लाभलब्धि, क्षायोपशमिक भोगलब्धि, क्षायोपशमिक परिभोगलब्धि, क्षायोपशमिक वीर्यलब्धि, क्षायोपशमिक आचारधर, क्षायोपशमिक सूत्रकृद्धर, क्षायोपशमिक स्थानधर, क्षायोपशमिक समवायधर, क्षायोपशमिक व्याख्याप्रज्ञप्तिधर, क्षायोपशमिक नाथधर्मधर, क्षायोपशमिक उपासकाध्ययनधर, क्षायोपशमिक अन्तकृद्धर, क्षायोपशमिक अनुत्तरौपपादिकदशधर, क्षायोपशमिक प्रश्नव्याकरणधर, क्षायोपशमिक विपाकसूत्रधर, क्षायोपशमिक दृष्टिवादधर, क्षायोपशमिक गणी, क्षायोपशमिक वाचक, क्षायोपशमिक दशपूर्वधर, क्षायोपशमिक चतुर्दश पूर्वधर; ये तथा इसी प्रकारके और भी दूसरे जो क्षायोपशमिक भाव हैं वह सब तदुमयप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है ॥ १९ ॥
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