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१८. )
छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, १९.
अटुकम्मक्खएण समुप्पत्तीदो। बुद्ध जो भावी सो वि खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, अंतरंग-बहिरंगावरणक्खएण समप्पत्तीदो। परिणिस्वदे जो भावो सो वि खइयो अविवागपच्चइओ, असेसकम्मक्खएण समप्पत्तीदो । सम्वदुक्खाणमंतयडतं पि खइयो अविवागपच्चइओ, सव्वदुक्खएण समुप्पत्तीदो । जे च अमी पुवुत्ता भावा अण्णे च समयं पडि समभदा सो सम्वो खइयो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम । - जो सो तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो -- खओवसमियं एइंदियलद्धि त्ति वा खओवसमियं बीइंदियलद्धि त्ति वा खओवसमियं तीइंदियलद्धि त्ति वा खओवसमियं चरिदियलद्धि ति वा खओवसमियं पंचिदियलद्धि त्ति वा खओवसमियं मदिअण्णाणि त्ति वा खओवसमियं सुदअण्णाणि त्ति वा खओवसमियं विहंगणाणि ति वा खओवसमियं आभिणिबोहियणाणि ति वा खओवसमियं सुदणाणि त्ति त्ति वा खओवसमियं ओहिणाणि त्ति वा खओवसमियं मण
वह आठों कर्मोंके क्षयसे उत्पन्न होता है। जो बुद्धभाव है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबंध है, क्योंकि, वह अन्तरंग और बहिरंग आवरणके क्षयसे उत्पन्न होता है । जो परिनिर्वृत भाव है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक है, क्योंकि, वह अशेष कर्मों के क्षयसे उत्पन्न होता है। सब दुःखोंका अन्तकृत्त्व भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक है, क्योंकि, वह सब दुःखोंके क्षयसे उत्पन्न होता । ये पूर्वोक्त भाव और दूसरे भी भाव जो प्रतिसमय उत्पन्न होते हैं वह सब क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है ।
विशेषार्थ- यहाँ क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध इक्कीस गिनाये हैं और इनके साथ प्रतिसमय होनेवाले अन्य क्षायिक भावोंकी सूचना की है । तत्त्वार्थसूत्रमें क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, केवलज्ञान, केवलदर्शन और पाँच क्षायिक लब्धियाँ ; ये कुल नौ भाव गिनाये हैं। यहाँ गिनाये गये भावोंमें कुछ ऐसे भाव अवश्य हैं जिनका अलगसे उल्लेख करना यहां आवश्यक है । जैसे सिद्धभाव, सर्वदुःख-अन्तकृद्भाव आदि । शेषका कथंचित् अन्तर्भाव हो जाता है । यद्यपि पाँच लब्धियोंका काम बाह्य सामग्रीकी प्राप्त नहीं है, किन्तु कहीं कहीं उनका काम बाह्य सामग्रीकी प्राप्ति बतलाया गया है, जो उपचार कथन है।
जो तदुभयप्रत्ययिक जीवभारबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है-- क्षायोपशमिक एकेन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक द्वीन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक त्रीन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक चतुरिन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक पञ्चेन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक मत्यज्ञानी, क्षायोपशमिक श्रुताज्ञानी, क्षायोपशमिक विभंगज्ञानी, क्षायोपशमिक आभिनिबोधिकज्ञानी, क्षायोपशमिक श्रुतज्ञानी, क्षायोपशमिक अवधिज्ञानी, क्षायोपमिक मनःपर्यय---
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