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५, ६, १८.)
बंधणाणुयोगद्दारे भावबंधपरूवणा सवेसि जीवाणमिच्छिदत्थे किण्ण देंति ? ण, तेसि जीवाणं लाहंतराइयभावादो । जा खइया लाहलद्धी सो खइयो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, लाहंतराइयक्खएण समुप्पत्तीदो। अरहंता जदि खीणलाहंतराइया तो तेसि सव्वत्थोवलंभो किण्ण जायदे? सच्चं, अस्थि तेसि सव्वत्थोवलंभो, सगायत्तासेसभुवणत्तादो। जा खइया भोगलद्धी सो वि खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, भोगतराइयवखएण समुप्पत्तीदो । जा खइया परिभोगलद्धी सो वि खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, परिभोगंतराइयक्खएण समुप्पत्तीदो । जदि अरिहंता खोणपरिभोगंतराइया तो किण्ण भोगेति परिभोगति वा?ण, खीणकसायाणं उवभोग-परिभोगेहि पओजणाभावादो* । जा खडया विरियलद्धी सो खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, विरियंतराइयक्खएण समुप्पत्तीदो। केवलणाणं केवलदसणं च खइयो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो, केवलणाण-दसणावरणक्खएण समुप्पत्तीदो । सिद्धे जो भावो सो खइयो अविवागपच्चइयो,
शंका- अरिहन्तोंके दानान्तरायका तो क्षय हो गया है, फिर वे सब जीवोंको इच्छित अर्थ क्यों नहीं देते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उन जीवोंके लाभान्तराय कर्मका सद्भाव पाया जाता है।
जो क्षायिक लाभलब्धि है वह भी क्षायिक अविपाक प्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि, वह लाभान्तराय कर्मके क्षयसे उत्पन्न होती है ।
__ शंका- अरिहन्तोंके यदि लाभान्तराय कर्मका क्षय हो गया है तो उनको सब पदार्थोकी प्राप्ति क्यों नहीं होती ?
समाधान- सत्य है, उन्हे सब पदार्थों की प्राप्ति होती है, क्योंकि, उन्होंने अशेष भुवनको अपने आधीन कर लिया हैं।
___ जो क्षायिक भोगलब्धि है वह भी जायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि, वह भोगान्तराय कर्म के क्षयसे उत्पन्न होती है । जो क्षायिक परिभोग लब्धि है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि, वह परिभोगान्तराय कर्मके क्षयसे उत्पन्न होती है।
_ शंका- यदि अरिहन्तोंके (भोगान्तराय और) परिभोगान्तराय कर्मका क्षय हो गया है तो वे अन्य पदार्थों का (उपभोग और) परिभोग क्यों नहीं करते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, जो जीव क्षीणकषाय होते हैं उनका उपभोग-परिभोगसे प्रयोजन नहीं रहता।
जो क्षायिक वीर्यलब्धि है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभाबबन्ध है, क्योंकि, वह वीर्यान्तराय कर्मके क्षयसे उत्पन्न होती है। केवलज्ञान और केवलदर्शन क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध हैं, क्योंकि, ये क्रमशः केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण कर्मके क्षयसे उत्पन्न होते हैं जो सिद्धभाव है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है, क्योंकि
*प्रतिषु ' उपभोगे परिभोगहि य जोजणाभावादो ' इति पाठ।
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