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________________ ४८८ ) छाखंडागमे वग्गणा-खं मरणणिवारणहें सवुक्कस्सियाए गुणसेडीए मरणं तेण मरणेण मदाणं ति भणिदं । पिल्लेवणकालो जहण्णओ वि उक्कस्सओ वि अस्थि । तत्थ जहण्णपिल्लेवणकालणिवारणठे सव्वचिरेण कालेण णिल्लेविज्जमाणाणं ति भणिदं । तेसि चरिमसमए मदावसिट्ठाणं आवलियाए असंखेज्जदिभागो णिगोदाणं ति भणिदे खीणकसायचरिम. समए मदावसिटाणं जीवाणं आवलियाए असंखेज्जदिमागमेत्तो णिगोदाणं पुलवियाणं पमाणं होदि त्ति भणिदं होदि । खीणकसायचरिमसमए असंखेज्जविभागमेत्तणिगोदसरीराणि होति । तत्थ एक्केक्कम्हि सरीरे मवावसिद्धजीवा अणंता भवंति । तेसिमाधारभूदपुलवियाओ आवलियाए असंखेज्जदिभागमेताओ होंति त्ति । एदेण जहण्णबादरणिगोदवग्गणापमाणपरूवणा कदा । एत्थ चत्तारि अणयोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति-- परूवणा पमाणं सेडि अप्पाबहुअं चेदि । एदहि चदुहि अणयोगद्दाराणि खीणकसायकालभंतरे बज्झमाण*. थूहल्लयादिसु वा मरंतजीवाणं परूवणा कीरदे । तं जहा- अस्थि खीणकसायपढमसमए मदजीवा। बिदियसमए मदजीवा वि अस्थि । तदियसमए मरणंतजीवा वि अस्थि . एवं णेयव्वं जाव खीणकसायचरिमसमओ त्ति । एवं परूवणा गदा । खीणकसायपढमसमए मदजीवा केत्तिया ? अणंता। बिदियसमए मदजीवा केत्तिया? अणंता । तदियसमए मदजीवा केत्तिया ? अणंता । एवं णेयव्वं जाव खीण निवारण करने के लिए सर्वोत्कृष्ट गुणश्रेणि द्वारा जो मरण है उस मरणसे मरे हुए जीवोंका ऐसा कहा है। निर्लेपनकाल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है । उनमें से जघन्य निर्लेपनकालका निवारण करने के लिए सबसे दीर्घ काल के द्वारा निर्लेप्यमान हुए जीवोंका ऐसा कहा है । ' तेसिं चरिमसमए मदावसिट्टाणं आवलियाए असंखे० भागो णिगोदाणं' ऐसा कहने पर क्षीणकषायके अन्तिम समयमें मरने के बाद बचे हुए जीवोंमें निगोद अर्थात् पुलवियों का प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। क्षीणकषायके अन्तिम समयमें असंख्यात लोकप्रमाण निगोदशरीर होते हैं । वहाँ एक एक शरीरमें मरने के बाद बचे हुए जीव अनन्त होते हैं। तथा उनकी आधारभूत पुलवियां आवलिके असंख्यात भागप्रमाण होती हैं । इस द्वारा जघन्य बादर निगोद वर्गणाके प्रमाणकी प्ररूपणा की गई है। यहां चार अनुयोगद्वार ज्ञातव्य है प्ररूपणा, प्रमाण, श्रेणि और अल्पबहुत्व। इन चार अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर क्षीणकषायकालके भीतर मरनेवाले अथवा थवर और आर्द्रक आदिमें मरनेवाले जीवोंकी प्रस्मणा करते हैं। यथा- क्षीण कषायके प्रथम समय में मरे हुए जीव हैं । दूसरे समयमें मरे हुए जीव हैं और तिसरे समय में मरनेवाले जीव है। इस प्रकार क्षीणकषायके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई। क्षीणकषायके प्रथम समयमें मरे हए जीव कितने हैं? अनन्त हैं। दूसरे समयमें मरे हए जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। तीसरे समय में मरे हुए जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इस प्रकार * अ० का प्रत्योः । दज्झमाण-' इति पाठ 1 Jain Education Internetronal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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