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________________ ५, ६, ५४८ ) बंधणाणुयोगदारे विस्सासुवचयपरूवणा कुदो ? उक्कस्सदवजहण्णबंधणगणादो तस्सेव उक्कस्सबंधणगुणस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो । को गुण०? सव्वजोवेहि अणंतगुणो । एवं वेउविय-आहार-तेजा-कम्मइयसरीरस्स ! ५४८ । जहा ओरालियसरीरस्स जहण्णुक्कस्सभेवभिण्णचदुहि पदेहि अप्पाबहुअं परूविदं तहा एदेसि चदुण्णं पि सरीराणं परवेयव्वं । एदेण सत्थाणप्पाबहुअपरूवणा कदा होदि । संपहि परस्थाणप्पाबहुअपरूवणठें उत्तरसुत्तं भणदि जहण्णयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥ ५४९ ॥ पुव्वसुत्तादो वेउब्वियसरीरस्से ति अणवट्टदे। तेणेवं पदसंबंधो कायव्वो। तं जहा- ओरालियउक्कस्सपदेसग्गउक्कस्तविस्तासुवचयादो वेउब्वियसरीरस्स जहण्णयस्स जहणओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो । जहण्णे त्ति उत्ते जीवादो पुधभूदेगवेउवियपरमाणू घेतव्यो । को गुण०? सव्वजोवेहि अणंतगुणो । कुदो? साभावियादो। तस्सेव जहण्णयस्सुक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगणो || ५५० ॥ क्योंकि, उत्कृष्ट द्रव्यके जघन्य बन्धनगुणसे उसीका उत्कृष्ट बन्धनगुण अनन्त गुणा उपलब्ध होता है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । इसी प्रकार वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरको अपेक्षा जानना चाहिए। ५४८ । ___ जिस प्रकार औदारिकशरीरका जघन्य और उत्कृष्ट भेदसे भेदको प्राप्त हुए चार पदोंके द्वारा अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार इन चार शरीरोंका भी कहना चाहिए। इसके द्वारा स्वस्थान अल्पबहुत्वप्ररूपणा को गई है। अब परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं जघन्यका जघन्य पदमें जघन्य विनसोपचय अनन्तगणा है । ५४९ । पूर्वके सूत्रसे वैक्रियिकशरीर ' पदकी अनुवत्ति होती है। इसलिए इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिए । यथा- औदारिकशरीरके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रके उत्कृष्ट विनसोपचयकी अपेक्षा जघन्य वैक्रियिकशरीरका जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है। जघन्य ऐसा कहनेपर जीवसे अलग हुए वैक्रियिकशरीरका एक परमाणु लेना चाहिए। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। उसीके जघन्यका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विनसोपचय अनन्तगुणा है ।५५० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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