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________________ ४५४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ५४४ सुवचओ थोवो ॥५४४॥ ओरालियसरीरस्स जहण्णयस्स जहण्णपदं ति वृत्ते जीवादो अवेदो एमो ओरालियपरमाणू घेत्तवो, तस्स विस्सासुवचओ थोवो अप्पे त्ति भणिदं होदि । __ तस्सेव जहण्णयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥५४५॥ ___तस्सेव एगोरालियपरमाणुस्स उक्कस्सविस्सासुवचओ अणंतगुणो, एगपरमाणुजहण्णबंधणगुणादो तत्थेव उक्कस्सबंधणगुणस्स अणंतगुणत्तदंसणादो। को गणगारो? सव्वजोवेहि अणंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥५४६॥ ओरालियसरीरपरमाणणं जीवादो पुधभदाणं सवक्कस्सो समुदयसमागमो ओरालियसरीरुक्कस्सं णाम । तस्स जहण्णओ विस्तासुवचओ अणंतगुणो । को गुण० ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥५४७॥ है ॥५४४॥ जघन्य औदारिकशरीरका जघन्यपद ऐसा कहनेपर जीवसे अवेदरूप एक औदारिक परमाणु ग्रहण करना चाहिए। उसका विस्रसोपचय स्तोक अर्थात् अल्प है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उसी जघन्यका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ।।५४५॥ उसी एक औदारिक परमाणुका उत्कृष्ट विनसोपचय अनन्तगुणा है, क्योंकि, एक परमाणुके जघन्य बन्धनगुणसे वहीं पर उत्कृष्ट बन्धनगुण अनन्तगुणा देखा जाता है । गुणकार क्या है? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। उसीके उत्कृष्टका जघन्य पदमें जघन्य विनसोपचय अनन्तगुणा है ।।५४६।। __ जीवसे पृथग्भूत औदारिकशरीर परमाणुओंका सबसे उत्कृष्ट समुदायसमागम उत्कृष्ट औदारिकशरीर कहलाता है । उसका जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । उसीके उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उकृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ॥५४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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