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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ४५६ ) ( ५, ६, ५५१ तस्सेव वे उब्वियएगपरमाणुस्स उक्कस्सविस्सासुवचओ अणंतगुणो । को गुण ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो। तस्सेव उक्कस्सयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥ ५५१ ॥ वेउवियपरमाणणं जीवादो पुधभदाणमुक्कस्सो समदायसमागमो उक्कस्सं णाम । तस्स जहग्णओ विस्सासुवचओ एगपरमाणुउक्कस्सविस्सासुवचयादो अणंतगुणो। एत्थ गुणगारो सव्वजोवेहि अणंतगुणो। तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सामुवचओ अणंतगुणो ।। ५५२॥ ___को गुण ? सव्वजीवेहि अणंतगणो । कुदो? साभावियादो । एदेसि सुत्ताणमावत्ति कादूण उवरिमसरीराणमप्पाबहुअं वुच्चदे । तं जहा-वेउव्वियसरीरउक्कस्सविस्सासुवचयादो आहारसरीरस्स जहण्णयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो । तस्सेव जहण्णयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्तओ विस्सासुवचओ अणंतगणो। तस्सव उक्कस्सयस जहण्णपदे जहण्णओ विस्तासुवचओ अणंतगुणो। तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतनुणो । तेजासरीरस्स जहण्णयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगणो । तस्सेव जहण्णयस्स उक्कस्सपदे उसी वैक्रियिकशरीरके एक परमाणुका उत्कृष्ट विस्र सोपचय अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। उसी उत्कृष्टका जघन्य पदमें विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ।। ५५१ ।। जीवसे अलग हए वैक्रियिकशरीरके परमाणुओंके समुदयसमागमको उत्कृष्ट कहते हैं । उसका जघन्य विस्रसोपचय एक परमाणुके उत्कृष्ट विस्रसोपचयसे अनन्तगुणा है। यहां पर गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है । उसीके उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विनसोपचय अनन्तगुणा है ।५५२ । गुणकार क्या है? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है, क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक है । अब इन सूत्रोंकी आवृत्ति करके आगेके शरीरोंका अल्पबहुत्व कहते हैं । यथा वैक्रियिकशरीसके उत्कृष्ट विस्रसोपचयसे जघन्य आहारकशरीरका जघन्य पदमें जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसी जघन्यका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसी उत्कृष्टका जघन्य पदमें जघन्य विनसोपचय अनन्तगुणा है। उसी उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । जघन्य तैजसशरीरका जघन्य पदमें जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसी 8 अ० का० प्रत्यो: ' जहण्णओ विस्सासुवनओ अनंतगुणो | तेजासरीरस्म इति पाठ! । Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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