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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड तव्वदिरित्तमणुक्कस्सं ।। ४५७ ॥ सुगम । उक्कस्सपदेण तेजासरीरस्स उक्कस्सयं पदेसग्गं कस्स (४५८। सुगम। अण्णवरस्स ।। ४५९।। ओगाहणादीहि पदेसग्गस्स विसेसाभावपदुप्पायणट्ठमण्णदरणिद्दसो कदो। जो जीवो पुत्वकोडाउओ अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु आउअंबंधदि ॥४६० ।। जो जीवो पुवकोडउओ सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु आउअं बंधदि सो तेजइयसरीरस्स छावद्धिसागरोवमाणं पढमसमयपबद्धमत्तचरिमसमओ त्ति ताव गोवुच्छागारेण णिसेगरचणं करेदि । जो सत्तमाए पुढवीए रइएसु आउअं बंधंतो* द्विदो विशेषार्थ-- यहाँ पर आहारकशरीरकी निषेक रचना गलित शेष न बतलाकर अवस्थितस्वरूप बतलाई है। इसका यह अभिप्राय है कि आहारकशरीरके उत्पन्न होनेके समयसे लेकर उसके समाप्त होने तकका जितना काल है, प्रत्येक समयमै निषेकरचना उतने समयप्रमाण होती है। मान लीजिए आहारकशरीरका अवस्थान काल आठ है तो प्रथम समयमें ग्रहण किये गये समयप्रबद्ध के आठ निषेक होंगे। दूसरे समयमें ग्रहण किये गये समयप्रबद्धके भी आठ ही निषेक होंगे। एक समय गल गया है, इसलिए आठ समयोंमें से एक समय कम निषेकरचना नहीं होगी। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए । मनुष्य और तिर्यञ्च जो वैक्रियिकशरीर उत्पन्न करते हैं उसकी निषेकरचना भी इसी प्रकार जाननी चाहिए । उससे व्यतिरिक्त अनुत्कृष्ट है ।।४५७।। यह सूत्र सुगम है। उत्कृष्ट पदको अपेक्षा तेजसशरीरके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रका स्वामी कौन है । ४५८ यह सूत्र सुगम है। जो अन्यतर जीव है ।।४५९॥ अवगाहवा आदिके द्वारा प्रदेशाग्रमें कोई विशेषता नहीं उत्पन्न होती इस बात का ज्ञान कराने के लिए 'अन्यतर' पदका निर्देश किया है। जो पूर्वकोटिकी आयवाला जीव नीचे सातवीं पृथ्वीके नारकियोके आयुकर्मका बन्ध करता है ।।४६०॥ जो पूर्वकोटिकी आयुवाला जीव सातवीं पृथ्वीके नारकियोंमें आयुकर्मका बन्ध करता है वह तैजसशरीरके छयासठसागरप्रमाण स्थितिके प्रथम समयप्रबद्धसे लेकर अन्तिम समय तक गोपुच्छाकाररूपसे निषेकरचना करता है। जो सातवीं पृथिवी के नारकियोंकी आयु का बन्ध * प्रतिष ' बंधदि तो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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