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________________ ५, ६, ४२५. ) बंधणाणुयोगदारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा ( ४०१ तस्स अप्पाओ भासद्धाओ ॥ ४२२ ।। सव्वाओ पज्जत्तीओ समाणिय भासंतस्स जस्स अप्पाओ भासद्धाओ सो उक्कस्सदव्वसामी होदि । भासाकालस्स. थोवत्तं किमट्ट मिच्छिज्जदे? ण, भासावावारेण जणिदपरिस्समेण भासापोग्गलणमभिघादेण य बहुआणं ओरालियपोग्गलाणं परिसदणप्पसंगादो। अप्पाओ मणजोगद्धाओ ॥ ४२३ ॥ चिदाजणिदपरिस्समेण परिगलंतपोग्गलक्खंधपडिसेहट्ठ अप्पाओ मणजोगद्धाओ त्ति भणिदं। अप्पा छविच्छेदा ।। ४२४ ।। छवी सरीरं । तस्स णहादी किरियाविसेसेहि खंडणं छेदो णाम । ते छेदा तत्थ अप्पा थोवा, बहुआणं किरियाणमंतरे तविरोहाभावादो। जेहि सरीरपीडा होदि ते तत्थ अप्पाणि त्ति भावत्थो । अंतरे ण कदाइ विउविदो ॥ ४२५ ॥ उसके बोलनेके काल अल्प हैं ॥ ४२२ ।। सब पर्याप्तियोंको समाप्त करके बोलते हुए जिसके भाषाकाल अल्प हैं वह उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी है। शंका-भाषाकालका स्तोकपना किसलिए चाहते हैं ? समाधान- नहीं, क्योंकि, भाषाके व्यापारसे जो परिश्रम होता है उससे तथा भाषारूप पुद्गलोंका अभिघात होनेसे बहुत औदारिकशरीरके पुद्गललोंकी निर्जरा होनेका प्रसंग आता है, इसलिए भाषाकालका स्तोकपना चाहते हैं । मनोयोगके काल अल चिन्ताके कारण जो परिश्रम होता है उससे गलनेवाले पुद्गलस्कन्धोंका निषेध करने के लिए ' मनोयोगके काल अल्प है ' यह कहा है। छविछेद अल्प हैं। ४२४ ।। छवि शरीरको कहते हैं। उसके नख आदिका क्रियाविशेषके द्वारा खण्डन करना छेद है । वे छेद वहां अल्प अर्थात् स्तोक हैं, क्योंकि, बहुत क्रियाओंके बिना उसके होने में कोई विरोध नही आता । जिनसे शरीरपीडा होती है वे वहां अल्प हैं यह इसका भावार्थ है । आयुकालके मध्य कदाचित् विक्रिया नहीं की ॥ ४२५ ॥ ता० प्रती 'भासकालस्स' इति पाठः 18 प्रतिषु 'तस्सण्णहादीणं इति पाठः | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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