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१०. ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, १५. एवं तिविहो चेव जीवभावबंधो होदि, अण्णस्स चउत्थस्स जीवभावस्स अणुवलंभादो । कम्माणमुदओ उदीरणा वा विवागो णाम, विवागो पच्चओ कारणं जस्स भावस्स सो विवागपच्चइओ जीवभावबंधो णाम । कम्माणमुदय-उदीरणाणमभावो अविवागो णाम । कम्माणमवससो खओ वा अविवागो ति भणिदं होदि । अविवागो पच्चयो कारणं जस्स भावस्स सो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम । कम्मागमुदय-उदीरणाहिंतो तदुवसमेण च जो उप्पज्जइ भावो सो तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो णाम ।
जो सो विवागपच्चइओ जीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसोदेवे त्ति वा मणुस्से त्ति वा तिरिक्खे ति वा रइए ति वा इथिवेदे ति वा पुरिसवेदे त्ति वा णवंसयवेदे त्ति वा कोहवेदे त्ति वा माणवेदे त्ति वा मायवेदे ति वा लोहवेदे ति वा रागवेदे ति वा दोसवेदे ति वा मोहवेदे त्ति वा किण्हलेस्से त्ति वा णीललेस्से त्ति वा काउलेस्से त्ति वा तेउलेस्से त्ति वा पम्मलेस्से त्ति वा सुक्कलेस्से ति वा असंजदेत्ति वा अविरदे ति वा अण्णाणे त्ति वा मिच्छादिट्रि त्ति वा जे चामण्ण
इस प्रकार तीन प्रकारका ही जीवभावबन्ध है. क्योंकि अन्य चौथा जीवभाव नहीं पाया जाता । कर्मो के उदय और उदीरणाको विपाक कहते हैं, और विपाक जिस भावका प्रत्यय अर्थात् कारण है उसे विपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध कहते हैं । कर्मो के उदय और उदीरणाके अभावको अविपाक कहते हैं। कर्मोके उपशम और क्षयको अविपाक कहते हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अविपाक जिस भावका प्रत्यय अर्थात कारण है उसे अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध कहते हैं। कर्मोके उदय और उदीरणासे तथा इनके उपशमसे जो भाव उत्पन्न होता हैं उसे तदुभयप्रत्ययिक जीवभावबन्ध कहते हैं।
विशेषार्थ- यहाँ जीवभावबन्धके तीन भेदोंके स्वरूपपर प्रकाश डाला गया है । विपाकका अर्थ उदय और उदीरणा है । अविपाक का अर्थ उपशम और क्षय है, तथा तदुभयका अर्थ क्षयोपशम है । इसमें देशघातिस्पर्धकोंका उदय और उदीरणा रहती है तथा सर्वघाति स्पर्धकोंका अनुदय रहता है । क्षयोपशम शब्द द्वारा अनुदय ही कहा गया है क्षय अर्थात् अनुदय ही उपशम ऐसी उसकी व्युत्पत्ति है । तदुभयमें विपाक और अविधाक दोनोंका ग्रहण हो जाता है, किन्तु क्षयोपशम शब्द द्वारा उदय और उदीरणा अविवक्षित रहते हैं । अभिप्राय दोनोंका एक है।
जो विपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है-- देवभाव, मनुष्यभाव, तिर्यचभाव, नारकमाव, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद क्रोधवेद, मानवेद, मायावेद, लोभवेद, रागवेद, दोष वेद, मोहवेद, कृष्णलेश्या, नोललेश्या, कापोतलेश्या, पीतलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या, असंयतभाव, अविरतभाव, अज्ञानभाव और मिथ्यादृष्टि भाव; तथा
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