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( ५, ६.३४८
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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं णाणागणहाणिसलागाहिंतो तेजइयस्स गणहाणिसलागाओ असंखेज्जगुणाओ ति सुत्तवयणादो । कम्मइयस्स अण्णोण्णभत्थरासिपमाणं पलिदो० असंखे० भागो।
__ जहण्णपदेण सम्वत्थोव आहारसरीस्स चरिमाए ट्ठिवीए पदेसग्गं ।। ३४८ ॥
कुदो ? गोवच्छागारेण सव्यणिसेगाणमवट्ठाणादो उक्कस्सटिदिसंजत्तपरमाणूणं बहुआणमसंभवादो च।
पढमाए ट्ठिबीए पदेसग्गं संखेज्जगुणं ॥ ३४९ ॥
को गण ? संखेज्जा समया अण्णोण्णब्भत्थरासी । किमट्ठमण्णोण्णभत्थरासी संखेज्जे ? अंतोमहत्तमेत्तगणहाणिअद्धाणेण सयलआहारसरीरदिविकाले अंतोमहत्तमेत्ते भागे हिदे संखेज्जाणं णाणागणहाणिसलागाणं पमाणवलंभावो । एवासिमण्णो. ण्णभत्थरासी वि संखेज्जा चेव होदि, पढमद्धिविपदेसग्गस्स संखेज्जगणतण्णहाणव वत्तीदो।
अपढम-अचरिमासु ट्ठिबीसु पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३५० ॥ को गुण ? अंतोमहत्तं । किचूदिवगणहाणि त्ति जं वृत्तं होवि ।
समाधान-- कार्मणशरीरको नानागुणहानिशलाकाओंसे तैजसशरीरकी नानागुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी हैं, इस सूत्रवचनसे जाना जाता है ।
कार्मणशरीरकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण पत्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
जघन्यपदकी अपेक्षा आहारकशरीरको अन्तिम स्थितिमें प्रदेशाग्र सबके स्तोक है ॥ ३४८॥
क्योंकि, सब निषेक गोपुच्छाके आकाररूपसे अवस्थित हैं और उत्कृष्ट स्थितिसे युक्त . परमाणुओंका बहुत होना असंभव है।
उससे प्रथम स्थितिमें प्रदेशाग्र संख्यातगणा है ।। ३४९ ।। गुणकार क्या है ? संख्यात समय प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है। शंका--अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण संख्यात क्यों है ?
समाधान-- गुणहानिका अध्वान अन्तर्मुहूर्त है। उससे आहारक शरीरके समस्त स्थितिकाल अन्तर्मुहुर्तके भाजित करने पर नानागुणहानियोंका प्रमाण संख्यात उपलब्ध होता है। इनकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण भी संख्यात ही होता है, क्योंकि, अन्यथा प्रथम स्थितिका निषेक संख्यातगुणा नहीं बन सकता।
उससे अप्रथम-अचरम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र असंख्यातगणा है ॥ ३५० ॥
गुणकार क्या है ? अन्तर्मुहूर्तप्रमाण गुणकार है । कुछ कम डेढ़ गुणहानिप्रमाण गण कार है यह उक्त कथन तात्पर्य है।
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