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________________ ५, ६, ३५५ ) बंषणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ अपढमासु ट्ठिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३५१॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमणिसेगमेत्तो । अचरिमासु ट्ठिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३५२॥ केत्तियमे तो विसेसो ? चरिमणिसेगेणूणपढमणिसेगमेत्तो । सव्वासु द्विदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३५३॥ के० विसेसो ? चरिणिसेगमेतो । एवं पंचणं सरीराणं जहण्णपदप्पाबहुअं समत्तं । उक्कस्सपदेण सम्वत्थोवं ओरालियसरीरस्स चरिमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गं ॥३५४॥ कुदो ? चरिमगणहाणिपदेसग्गादो हेटिमहेट्ठिमगुणहाणीणं पदेसग्गस्स दुगुणदुगणकमेण १००। २०० । ४००। ८०० । १६०० । ३२०० । अवट्ठाणसणादो । अपढम-अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पवेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥३५५॥ को गण? असंखेज्जा लोगा । रूवणणाणागणहाणिसलागाओ ५ विरलिय विगं उससे अप्रथम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥३५॥ कितना अधिक है ? अन्तिम निषेकका जितना प्रमाण है उतना अधिक है। उससे अचरम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥३५२।। कितना अधिक है ? प्रथम निषेकमेंसे अन्तिम निषेकके प्रमाणको कम करने पर जितना शेष रहे उतना अधिक है। उससे सब स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥३५३।। विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम निषेकका जितना प्रमाण है उतना है। इस प्रकार पाँच शरीरोंका जघन्य पदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। उत्कृष्टपदकी अपेक्षा औदारिकशरीरके अन्तिम गणहाणिस्थानान्तरमें प्रदेशाग्र सबसे स्तोक हैं ॥३५४॥ क्योंकि, अन्तिम गुणहानिके प्रदेशाग्रसे अधस्तन अधस्तन गुणहानियोंका प्रदेशाग्न दूने दुने क्रमसे अवस्थित देखा जाता है । यथा- १००, २००, ४००, ८००, १६००, ३२०० । उससे अप्रथम-अचरम गणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र असंख्यातगणा है।३५५। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार है। एक कम नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन कर और विरलित राशिके प्रत्येक एकको दूनाकर परस्पर गुणा करनेपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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