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८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, १२. साहू द्विवसुदणाणं होदि । कधं तस्स द्विदत्तं? अण्णत्थ संचाराभावादो। तं पि कुदो? परेसि करणसत्तीए अभावादो । जो अवगयमत्थं सण्णिमणि चितिऊण वोत्तं समत्थो सो जिदं णाम सुदणाणं । जो अवगयबारहअंगो संतो खलणेण विणा अवगयमत्थं वोत्तुं समत्थो सो परिजिदंणाम सुदणाणं होदि। ण च एदे वे वि आगमा परपच्चायणक्खमा दच्छत्ताभावादो। जो अवगयबारहअंगो संतोपरेसि वक्खाणक्खमो सो आगमो वायणोव. गदो णाम । का वाचना? शिष्याध्यापनं वाचना । सुत्तं सुदकेवली, तेण समं सुदणाण सुत्तसमं । अधवा सुत्तं बारहंगसद्दागमो, आइरियोवदेसेण विणा सुत्तादो चेव जं उपज्जदि सुदणाणं तं सुतसमं।अत्थो गणहरदेवो, आगमसुत्तेण विणा सयलसुदणाणपज्जाएण परिणदत्तादो । तेण समं सुदणाणं अत्थसमं । अधवा अत्थो बीजपदं, तत्तो उप्पण्णं सयलसुदणाणमत्थसमं। आइरियाणमवएसो गंथो, तेण समं गंथसमं। बारहअगसद्दागममाइरियपादमले सोऊण जं उप्पण्णं सुदणाणं तं गंथसममिति वृत्तं होदि । आइरियपादमूले बारहंगसद्दागमं सोऊण जस्स अहिलप्पत्थविसयं चेव सुदणाणं समुप्पण्णं सो णाम. समं । बारहंगसद्दागमं सुर्णेतस्स जस्स सुदपडिबद्धत्यविसयमेव सुदणाणं समुप्पण्णं सो अवधारित कर लिया है वह साधु स्थित श्रुतज्ञान है ।
शंका-इसकी स्थित संज्ञा क्यों है ? समाधान-अन्यत्र इसका संचार नहीं होता, इससे उसकी स्थित संज्ञा है । शंका-ऐसा भी क्यों है ? समाधान-क्योंकि, अन्यके साधकतमरूपसे करण होनेकी शक्ति नहीं पाई जाती ।
जो जाने हुए अर्थको धीरे-धीरे विचार कर कहने के लिये समर्थ होता है वह जित नामका श्रुतज्ञान है। जो बारह अंगोंको जानकर बिना स्खलनके जाने हुए अर्थको कहने के लिये समर्थ होता है वह परिजित नामका श्रुतज्ञान है । ये दोनों ही आगम अन्यको ज्ञान कराने में समर्थ नहीं हैं, क्योंकि, इनमें दक्षता नहीं पाई जाती। जो बारह अंगोंको जानकर अन्यके लिये उनका व्याख्यान करने में समर्थ है वह वाचनोपगत नामका आगम है ।
शंका वाचना किसे कहते हैं ? समाधान-शिष्योंको पढ़ाना इसका नाम वाचना है ।
सूत्रका अर्थ श्रुतकेवली है । उसके समान जो श्रुतज्ञान होता है वह सूत्रसम श्रुतज्ञान है । अथवा, सूत्रका अर्थ बारह प्रकारका अंगरूप शब्दागम है । आचार्यके उपदेश के बिना सूत्रसे ही जो श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है वह सूत्रसम श्रृतज्ञान है। अर्थ गणधरदेवका नाम है, क्योंकि, वे आगमसूत्रके बिना सकल श्रुतज्ञानरूप पर्यायसे परिणत रहते हैं, इनके समान जो श्रुतज्ञान होता है वह अर्थसम श्रुतज्ञान है । अथवा अर्थ बीजपदको कहते हैं, इससे जो समस्त श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है वह ग्रन्थसम श्रुतज्ञान है । आचार्यों के उपदेशको ग्रन्थ कहते हैं, इसके समान जो श्रुतज्ञान होता है वह ग्रन्थसम श्रुतज्ञान है । आचार्यके पादमूलमें बारह अंगरूप शब्दागमको सुनकर जो श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है वह ग्रन्थसम श्रुतज्ञान है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । आचार्यके पादमूलमें बारह अंगरूप शब्दागमको सुनकर जिसके कथन करने योग्य अर्थको विषय करनेवाला ही श्रुतज्ञान उत्पन्न हुआ है वह नामसम श्रुतज्ञान है। बारह अंगरूप शब्दागमको सुननेवाले जिसके सुने हुए अर्थसे सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थको विषय करनेवाला
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