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५, ६, १२.)
बंधणाणुयोगद्दारे भावबंधपरूवणा जो सो दध्वबंधो णाम सो थप्पो ।। १० ॥ किमळं थप्पो कोरदि ? बहुवष्णणिज्जत्तादो।
जो सो भावबंधो णाम सो दुविहो-- आगमदो भावबंधो चेव णोआगमदो भावबंधो चेव ॥ ११ ॥ एवं दुविहो चेव भावबंधो होदि; आगम-णोआगमेहितो वदिरित्तभावाणुवलंभादो।
जो सो आगमदो भावबंधो णाम तस्स इमो णिहेसो-ठिदं जिदं परिजिदं वायणोवगदं सुत्तसमं अत्थसमं गंथसमं णामसमं घोससमं । जा तत्थ वायणा वा पुच्छणा वा पडिच्छणा वा परियट्टणा वा अणुपेहणा वा श्रय-थुदि-धम्मकहा वा जे चामण्णे एवमादिया उवजोगा भावे त्ति कटु जावदिया उवजुत्ता भावा सो सव्वो आगमदो भावबंधो णाम ॥ १२ ॥
दिदं जिदं परिजिदं वायणोवगदं सुत्तसमं अत्थसमं गंथसमं णामसमं घोससममिदि णवविहो आगमो । कधमेगो आगमो णवविहत्तं पडिवज्जदे ? लक्खणभेदेण । कि तल्लक्खणं? उच्चदे-अवधृतमात्रं स्थितं नाम । जेण बारह वि अंगाणि अवहारिवाणि सो
द्रव्यबन्ध स्थगित किया जाता है ॥ १० ॥ शंका- किसलिये स्थापित किया जाता है ? समाधान- क्योंकि, आगे उसका बहुत वर्णन करनेवाले हैं। भावबन्ध दो प्रकारका है-आगमभावबन्ध और नोआगमभावबन्ध ॥११॥
इस प्रकार भावबन्ध दो ही प्रकारका होता है, क्योंकि, आगमभाव और नोआगमभावसे अतिरिक्त अन्य भाव नहीं पाया जाता।
जो आगमभावबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है- 'स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम । इनके विषयों वाचना, पच्छना, प्रतीच्छना, परिवर्तना अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति, धर्मकथा, तथा इनसे लेकर जो अन्य उपयोग हैं उनमें भावरूपसे जितने उपयुक्त भाव हैं वे सब आगमभावबन्ध है ।। १२ ।
स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम; यह नौ प्रकारका आगम है।
शंका-एक आगमके नौ भेद कैसे हो जाते हैं ? समाधान-लक्षणके भेदसे एक आगमके नौ भेद हो जाते हैं। शंका-वह लक्षण कौन-सा है ? समाधान-कहते हैं, अवधारणमात्रकी स्थित संज्ञा है । जिसने बारह ही अंगोंको
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