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________________ छक्खंडागमे वगणा-खंड मट्टियपिडेण पासादेसुर घडिदरूवाणि गिहकम्माणि णाम । तेण चेव कुड्डेसु घडिदरूवाणि भित्तिकम्माणि णाम । दंतिदंतादिसु घडिदरूवाणि दंतकम्माणि णाम। भेंडेहि घडिदरूवाणि भेंडकम्माणि णाम । एदाणि दस विह कम्माणि देसामासियाणि । तेण पत्तकम्म-भिगकम्म-तलवत्तकम्म-तालिवत्तकम्म-भुजवत्तकम्म-सीवणकम्म-मणिवियाण-कम्मादीणि वत्तवाणि । एदेसु कम्मेसु जहासरूवेण दृविदबंधो सम्भावढवणबंधो णाम। तग्विवरीयसरूवेण ढवणाबंधो असब्भावटवणबंधो णाम । एदेसि देसामसियत्तं कधं णव्वदे ? उवरि भण्णमाण-एवमादिय-वयणादो। अक्खो जाम पासओ, वराडओ णाम कवड्डुओ। एदाणि वे वि वयणाणि असब्भावढवणाए ठविदाणि । कुदो एवं नव्वदे? अक्खेसु वा वराडएसु वा त्ति सत्तमीयंतणिद्देशाभावादो। एदेसु एदे वा अमा एयत्तेण ठवणाए बद्धीए ठविज्जति बंधो त्ति सो सम्वो ठवणबंधो णाम । ठवणासद्दो बुद्धिवाचओ त्ति कुदो णव्वदे ? धरणी धारणी ढवणा कोट्ठा पदिट्ठा त्ति सुत्तादो। आकार घटित करते हैं वे गृहकर्म कहलाते हैं। उसीसे दिवालोंमें जो आकार बनाये जाते हैं वे भित्तिकर्म कहलाते हैं। हाथीके दांतोंमें जो आकार बनाये जाते हैं वे दन्तकर्म कहलाते हैं । भेंडोंसे जो आकार बनाये जाते हैं वे भेंडकर्म कहलाते हैं। ये दसों ही कर्म देशामर्शक हैं । इससे पत्रकर्म, भृङ्गकर्म, तलवत्त (आभूषण) कर्म, तालिपत्रकर्म, भोजपत्रकर्म, सोनेका कर्म और मणिविज्ञानकर्म आदिको ग्रहण करना चाहिए। इन कर्मोमें तदाकारस्वरूपसे बंधकी स्थापना करना सद्भावस्थापनाबंध है और अतदाकाररूपसे बंधकी स्थापना करना असद्भावस्थापनाबंध है । शंका--- इनका देशामर्शकस्थापना कैसे जाना जाता है ? समाधान-- सूत्र में आगे कहे जानेवाले 'एवमादिय' वचनसे जाना जाता है । अक्ष पांसेका नाम है और वराटक कौडीका नाम है। ये दोनों ही वचन असद्भावस्थापनाके सूचक हैं । शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- सूत्रमें ' अक्खेसु वा वराडएसु वा ' इस प्रकार सप्तम्यन्त वचनका निर्देश नहीं किया है । इससे जाना जाता है कि ये दोनों वचन असद्भावस्थापनाके सूचक है। इनमें या ये 'अमा' अर्थात् अभेदरूपसे, स्थापना अर्थात् बुद्धिमें 'बन्ध' इस प्रकार स्थापित किये जाते हैं इसलिये यह सब स्थापनाबन्ध कहलाता है। शंका-- स्थापना शब्द बुद्धि का वाचक है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- 'धरणी, धारणी, स्थापना, कोष्ठा और प्रतिष्ठा ये बुद्धि के नाम हैं' इस सूत्रसे जाना जाता है ।। विशेषार्थ-- यहाँ सद्भाव और असद्भावरूप दोनों प्रकारके स्थापनाबन्धकी चर्चा की गई है। स्थापना एक पदार्थकी दूसरे पदार्थमें होती है। जिसमें स्थापना की जाती है यदि वह तदाकार होता है तो वह सद्भावस्थापना कहलाती है और यदि अतदकाकार होता है तो वह असद्भावस्थापना कहलाती है। बुद्धिसे 'यह वह ही है ' ऐसा एकत्व स्थापित करके स्थापना की जाती है, ऐसा यहाँ समझना चाहिये। है अ-काप्रत्योः · वट्टइपिडेण पासादेसु', आप्रती · वट्टइपासादेसु ' ता. प्रती ' वड्डइपिंडेण पासादेसु ' इति पाठः। * प्रकृति अनुयोगद्वार सू० ४० ( पु० १३ ) । .त्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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