________________
३६२) छक्खंडागमे वग्गणाखंड
( ५, ६, ३०४ तत्थ सुहमेइंदियअपज्जत्तसंजत्तो जहण्णाउअबंधो जिसेयखद्दामवग्गहणं णाम । णिसेयखुद्दाभवग्गहणादो आवलि० असंखे०मागेणणजीवणियकालो णिसेयखुद्दाभवग्गहणस्स संखेज्जे भागे धादिदूण दृविदसंखे० भागो वा घावखुद्दाभवग्गहणं । सन्धजहण्णजीवणियकालो घादखुद्दाभवग्गहणं, होवि त्ति भणिदं होदि । एत्थ दोसु खुद्दाभवग्गहणेसु कं घेपदे ? घावखुद्दाभवग्गहणं, जहण्णणिवत्तीए खद्दाभवग्गहणत्ताणववत्तीदो। भवग्गहणं णाम जीवणियकालो सो च खुद्दओ जहण्णओ कदलीघादम्हि चेव होदि ण बंधे, णिवत्तीए जहणियाए तत्तो संखेज्जगणत्तसणादो । एवं घावखुद्दाभवग्गहण सत्तण्णमपज्जत्तजीवसमासाणं सरिसं होदूण संखेज्जावलियमेत्तं । तं कथं नव्वदे ? जत्तीदो । तं जहा
तिण्णिसहस्सा सत्तसदाणि तेहत्तरं च उस्सासा।
एसो हवदि मुहुत्तो सव्वेसिं चेव मणुयाणं ३७७३ ।।१९।। एवे महत्तस्सासे टुविय पुणो एगस्सासमंतरसंखेज्जावलियाहि गणिदे एगमुहुत्तावलियाओ होंति ।
तिण्णि सदा छत्तीसा छावट्ठिसहस्स चेव मरणाणि ।
अंतोमहत्तकाले तावदिया चेव खुद्दभवा ॥२०॥ भवग्रहण । उनमें से जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तसे युक्त जघन्य आयुका बन्ध है वह निषेक क्षुल्लकभवग्रहण है । तथा निषेकक्षुल्लक भवग्रहणसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कम जो जीवनीय काल है वह अथवा निषेकक्षुल्लकभवग्रहणके संख्यात बहुभागका घात करके स्थापित किया गया जो संख्यातवाँ भाग है वह घातक्षुल्लकभवग्रहण है। सबसे जघन्य जीवनीय कालप्रमाण घातक्षुल्लकभवग्रहण है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका- यहां दो क्षुल्लकभवग्रहणोंमेंसे किसका ग्रहण किया है ?
समाधान - घातक्षुल्लकभवग्रहणका ग्रहण किया है, क्योंकि, जघन्य निर्वृत्ति क्षुल्लकभवग्रहणरूप नहीं बन सकती।
भवग्रहणका नाम जीवनीयकाल है और वह क्षुल्लक तथा जघन्य कदलीघातके होने पर ही होता हैं, बन्धके होनेपर नहीं, क्योंकि, जघन्य निर्वृत्ति उससे संख्यातगुणी देखी जाती है। यह घातक्षुल्लकभवग्रहण सात अपर्याप्त जीवसमासोंका समान होकर सख्यात आवलिप्रमाण है।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- युक्तिसे । यथासभी मनुष्योंके तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छ्वासोंका एक मुहुर्त होता है । १९ ।
एक मुहूर्तके इन उच्छ्वासोंको स्थापित करके पुनः एक उच्छ्वासके भीतर स्थित संख्यात आवलियोंसे गुणित करनेपर एक मुहूर्तकी आवलियाँ होती हैं।
अन्तर्मुहूर्तके कालके भीतर छयासठ हजार तीनसो छत्तीस मरण और उतने ही क्षुल्लक भवग्रहण होते हैं ॥ २०॥
Xता०प्रसो ' एव ' इति पाठः 1
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org