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५, ६, ३०६ )
योगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ
( ३६३
इदि वयणादो एगमृहुत्त मंतरे एत्तियाणि खुद्दाभवग्गहणाणि होंति ६६३३६ । एत्तियमेत्तमवग्गहणेसु जवि पुग्वृत्त संखेज्जावलियाओ लब्भंति तो एगखुद्दाभवग्गहणम्हि किं लामो त्तिपमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए संखेज्जावलियाओ लब्मंति, एइंदियाणं संखेज्जुस्सा सेहि एगखुद्दाभवग्गहणस्स निष्पत्तीदो । तेणेदं सव्वत्थोवं होदि । १ । । एइंदियस्स जहणिया पज्जत्तणिव्वत्ती संखेज्जगुणा । ३०५ । एइंदियस्स जहणिया पज्जत्तणिग्वत्ती णाम सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स जहणिया पज्जत्तणिव्वत्ती । एसा खुद्दाभवग्गहणादो संखेज्जगुणा । कुदो ? खुद्दामवग्गहणादो सुहमे इंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णणिव्वत्ती संखेज्जगुणा । तस्स चेव सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया जिव्वत्ती संखेज्जगुणा । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स जहणिया निव्वत्ती तत्तो संखेज्जगुणा त्ति गुरूवदेसादो । २ । ।
समुच्छिमस्स जहणिया पज्जत्तणिव्वत्ती संखेज्जगुणा । ३०६ | कुदो ? बादरेइंदियपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णणिव्वत्तीए गहणादो का निव्वत्ती णाम ? कवलीघादेण विणा जीवणकालो आउबंधद्धाणंत भूदो जीवणियद्वाणं पुण वित्ती न होदि, तस्स बंधट्ठाणेसु अंतभावनियमाभावादो । ३. 11
इस वचन के अनुसार एक मुहूर्त के भीतर इतने क्षुल्लकभवग्रहण होते हैं- ६६३३६ ॥ इतने भवग्रहणों में यदि पूर्वोक्त संख्यात आवलियां लब्ध आती हैं तो एक क्षुल्लकभवग्रहण में क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार फलराशिसे इच्छाराशिको गुणित कर प्रमाणराशिका भाग देने पर संख्यात आवलियाँ प्राप्त होती हैं, क्योंकि, एकेन्द्रियोंके संख्यात उच्छ्वासोंसे एक क्षुल्लकभवग्रहणकी उत्पत्ति होती है, इसलिए यह सबसे स्तोक है ।
उससे एकेन्द्रिय जीवको जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति संख्यातगुणी है । ३०५ ॥ एकेन्द्रियकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति इसका अर्थ है सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति | यह क्षुल्लकभवग्रहणसे संख्यातगुणी है, क्योंकि, क्षुल्लकभवग्रहणसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवकी जघन्य निर्वृत्ति संख्यातगुणी है । उससे उसी सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवकी उत्कृष्ट निर्वृत्ति संख्यातगुणी है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवकी जघन्य निर्वृत्ति संख्यातगुणी है ऐसा गुरुका उपदेश है ।
उससे सम्मूच्र्छन जीवको जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति संख्यातगुणी है । ३०६ | क्योंकि, यहाँ बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवकी सबसे जघन्य निर्वृत्तिका ग्रहण किया है । शंका-- निर्वृत्ति किसे कहते हैं ?
समाधान -- कदलीघातके बिना आयुकर्मके बन्धकालके भीतर जो जीवनकाल है उसे निर्वृत्ति कहते हैं ।
परंतु जीवनीयस्थान निर्वृत्ति नहीं होता, क्योंकि, उसका बंधस्थानों में अंतर्भाव होने का
०ता० प्रो' - बंधद्वाणं मूदो' इति पाठ: 1
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