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३५८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, २९४ ___ अप्पप्पणो सव्वजहण्णणिव्वत्तिढाणस्सुवरि समउत्तराविकमेण गिरंतरणिव्वत्तिढाणाणि ताव लभंति जाव एइंदिएसु बावीसवस्ससहस्साणि, बेइंदिएसु बारसवासाणि तेइंदिएसु एगणवण्ण रादिदियाणि चरिविएसु छम्मासा सण्णि-असण्णिांचदिएसु पुवकोडि त्ति । तदो अप्पप्पणो जहण्णणिवत्तिटाणे समऊणे अप्पप्पणो उक्कस्साउअम्मि सोहिदे णिव्वत्तिढाणाणि होति । पुणो अप्पप्पणो जहण्णणिवत्तीए संखेज्जावलियमेत्ताए अप्पप्पणो णिव्वत्तिट्ठाणेसु भागे हिदेसु संखेज्जरूवाणि लब्भंति । जं लद्धं सो गणगारो। ६ ।।
जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २९४ ॥
केत्तियमेत्तेण? आवलि० असंखे० भागमेत्तेण वा अप्पप्पणो सध्वजहणणिब्धत्तीए संखेज्जेहि भागे हिदे वा । एस्थ कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । ७ ।।
उक्कस्सिया णिवत्ती विसेसाहिया ॥२९५॥ केत्तियमेत्तेण ? अप्पप्पणो सवजहण्णजीविवमेत्तेण । ८ ।। सव्वत्थोवा गम्भोवक्कंतियस्स जहणिया पज्जत्तणिवत्ती ।२९६। गन्मोवक्कं तियसव्वजहण्णणिवत्तीए अंतोमुहुत्तपमाणत्तादो। ९ ।।
अपने अपने सबसे जघन्य निर्वत्तिस्थानके ऊपर एक समय अधिक आदिके क्रमसे निरन्तर निर्वत्तिस्थान एकेन्द्रियोंमें बाईस हजार वर्षप्रमाण, द्वीन्द्रियोंमें बारह वर्षप्रमाण, त्रीन्द्रियोंमें उनचास रात-दिनप्रमाण, चतुरिन्द्रियोंमें छह महिनाप्रमाण तथा संज्ञी और असंज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें पूर्वकोटि वर्षप्रमाण होनेतक प्राप्त होते हैं । तदनन्तर अपने अपने एक समय कम जघन्य निर्वृत्तिस्थानको अपनी अपनी उत्कृष्ट आयुमेंसे कम करने पर निर्वृत्तिस्थान होते हैं। पुन: अपनी अपनी संख्यात आवलिप्रमाण जघन्य निर्वृत्तिका अपने अपने निर्वृत्तिस्थानोंम भाग देने पर संख्यात अंक लब्ध आते हैं। यहाँ जो लब्ध आया है वह गुणकार है।
उनसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक हैं ।। २९४ ।।
कितने अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक हैं । अथवा अपनी अपनी जघन्य निर्वृत्तिके संख्यात बहुभागप्रमाण अधिक हैं । यहाँ कारणका कयन पहलेके समान करना चाहिए ।
उनसे उत्कृष्ट नित्ति विशेष अधिक है । ।। २९५ ।।
कितनी अधिक है ? अपने अपने सबसे जघन्य जोवित रहने का जो प्रमाण है उतनी अधिक है।
गर्भोपक्रान्त जीवको जघन्य पर्याप्त निवृत्ति सबसे स्तोक है ।। २९६ ।। क्योंकि, गर्भोपक्रान्त जीवकी सबसे जघन्य निर्वृत्ति अन्तर्मुहुर्तप्रमा है।
ता०प्रसो 'भागेहि (दे) वा' अ०प्रती 'भागे वा ' का० प्रती 'भागेहि वा' इति पाउ ।
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