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________________ ३५६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६. २९० उक्कस्सओ चेदि । सुदृढ़ जदि थोवं घावेवि तो जहणियणिव्यत्तिट्ठाणस्स संखेज्जे भागे जीविदूण सेससंखे०भागस्स संखेज्जे भागे संखेज्जदिभागं वा घादेदि । दि पुण बहुअं घादेवि तो जहण्णणिव्वत्तिद्वाणसंखे०भागं जीविदूण संखेज्जे भागे कदलीघादेण घादेदि। तं जहा- एगो तिरिक्खो मणुसो वा सुहुमणिगोदपज्जत्तसवजहण्णाउअं बंधिदूण कालं करिय सुहमणिगोदपज्जत्तएसुवज्जिय सवलहुएण कालेण चदुहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो होदूण एगवारेण जहण्णणिवत्तिट्टाणस्स संखेज्जेसु भागेसु जीविदद्धपमाणेण कदलीघादेण घाविदूण ढविदेसु तमेगमपुणरुत्तं जीवणियद्वाणं होवि । पुणो अण्णो जीवो सुहमणिगोदपज्जत्तसन्धजहण्णणिन्वत्तिटाणं समउत्तरं बंधिदूणुप्पज्जिय कवलीघादेण पुव्वत्तजीवणियहाणादो समउत्तरं काऊण अच्छिदो ताधे तं बिदियमपुणरुत्तं जीवणियट्ठाणं होदि । पुणो तदियजीवेण सुहमणिगोदपज्जतसव्वजहण्णाउअं दुसमउत्तरबंधण पुवुत्तसध्वजहण्णघाटाणस्सुवरि कदलीघादेण दुसमउत्तरे जीवणियहाणे कदे तं तदियमपुणरुत्तं जीवणियहाणं होदि । एवं हेढदो उरि तिसमउत्तरचदुसमउत्तरादिकमेण गाणाजीवे अस्सिदूण णेयव्वं जाव समऊणसव्वजहण्णणिव्वत्तिटाणं ति । एवं कदे अंतोमुहुत्तणबावीसवस्ससहस्समेत्तणिवत्तिट्टाणाणमुवरि सव्वजहाणणिन्वत्तिढाणस्स संखेज्जा भागा पविसिदूण जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि भवंति । पुम्वृत्तविसेसादो संपहिय विसेसो असंखेज्जगुणो। कुदो ? जहण्ण यदि अति स्तोकका घात करता है तो जघन्य निर्वृत्तिस्थानके संख्यात बहु भाग तक जीवित रह कर शेष संख्यातवें भागके संख्यात बहुभाग या संख्यातवें भागका घात करता है। यदि पुनः बहुतका घात करता है तो जघन्य निर्वत्तिस्थानके संख्यातवें भागप्रमाण काल तक जीवित रह कर संख्यात बहुभागका कदलीघातद्वारा घात करता है। यथा- एक तिर्यञ्च या मनुष्य के सूक्ष्म निगोद पर्याप्तककी सबसे जघन्य आयुका बन्ध करके और मर कर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो कर सबसे जघन्य कालके द्वारा चार पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो कर एक बार में जघन्य निर्वत्तिस्थानके संख्यात बहुभागका कदलीघातसे घात कर जीवित कालप्रमाण स्थापित करने पर वह एक अपुनरुक्त जीवनीयस्थान होता है । पुन: अन्य जीव सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकके सबसे जघन्य निर्वत्तिस्थानको एक समय अधिक बाँध कर और वहां उत्पन्न होकर कदलीघातके द्वारा पूर्वोक्त जीवनीय स्थानसे इसे एक समय अधिक करके स्थित हुआ तब वह दूसरा अपुनरुक्त जीवनीयस्थान होता है। पुन. सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक की सबसे जघन्य आयुका बंध करने वाले तीसरे जीवके द्वारा पूर्वोक्त सबसे जघन्य घातस्थानके ऊपर कदलीघातके द्वारा दो समय अधिक जीवनीयस्थानके करने पर वह तीसरा अपुनरुक्त जीवनीयस्थान होता है। इस प्रकार नीचेसे ऊपर तीन समय अधिक और चार समय अधिक आदिके क्रमसे नाना जीवोंका आश्रय लेकर एक समय कम सबसे जघन्य निर्वत्तिस्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। ऐसा करने पर अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्षप्रमाण निर्वृत्तिस्थानोंके ऊपर सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थानके संख्यात बहुभागका प्रवेश कराकर जीवनीयस्थान विशेष अधिक होते हैं। पूर्वोक्त विशेषसे साम्प्रतिक विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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