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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
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( ५, ६, २७५ गुणहाणिट्ठाणंतरमंतोमुत्तमिदि सुत्तादो चेव गव्ववे, जुत्तिगोचरमइच्छिदूण द्विवत्तादो। णाणागुणहाणिसलागपमाणं पुण सुत्तादो जत्तीदो च नव्वदे । तं जहाअंतोमहत्तस्स जदि एगगणहाणिसलागा लब्भवि तो तिण्णं पलिदोवमाणं तेत्तीस सागरोवमाणं च कि लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिविच्छाए ओट्टिवाए जाणापदेसगुणहाणिढाणंतराणि पलिदो० असंख० भागमेत्ताणि लब्भंति । एदेसि थोवबहुत्तपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं थोवं ॥ २७५ ॥ कुदो ? अंतोमहत्तपमाणत्तादो।
णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २७६ ॥ को गुणगारो ? पलिदो० असंखे०भागो।
आहारसरीरिणा तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्येण आहारसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं तदो अतोमुहुत्तं गंतूण दुगुणहीणं ॥२७७॥
ओरालिय-उब्धियसरीरेहि सह आहारसरीरस्स परूवणा किण्ण कदा, अंतोमहत्तं गंतूण दुगुणहीणत्तं पडि भेदाभावादो ? ण, गणहाणिसलागसंखगदभेद
गुणहानिस्थानान्तर अन्तर्मुहुर्तप्रमाण है यह बात सूत्रसे ही जानी जाती है, क्योंकि, वह युक्तिकी विषयताका उल्लंघन कर स्थित है। परन्तु नानागुणहानिशलाकाओंका प्रमाण सूत्र और युक्ति दोनोंसे जाना जाता है । यथा-अन्तर्मुहुर्तकी यदि गुणहानिशलाका प्राप्त होती है तो तीन पल्य और तेतीस सागरोंकी कितनी गुणहानिशलाकायें प्राप्त होंगी, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाण राशिका भाग देने पर नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण लब्ध होते हैं । अब इनके अलबहुत्वका करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं।
एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर स्तोक है ।। २७५ ।।
क्योंकि, वह अन्तर्मुहुर्तप्रमाण है। उससे नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ।। २७६ ।।
गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है।
जो आहारकशरीरवाला जीव है, प्रथम समयमें आहारक हुए और प्रथम समय में तद्भवस्थ उसी जीवके द्वारा आहारकशरीररूपसे जो प्रथम समयमें प्रदेशाग्र निक्षिप्त होता है उससे अन्तर्मुहूर्त जाकर वह दुगुणा हीन होता है ।। २७७ ।।
__ शंका-औदारिकशरीर और वैक्रियिकशरीरके साथ आहारकशरीरकी प्ररूपणा क्यों नहीं की, क्योंकि, अन्नर्मुहूर्त स्थान जाकर दुगुणा हीन होता है इस अपेक्षासे इनके कथन में कोई भेद
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