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________________ ३४४ ) छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ६, २७१ डण संखेज्जभागब्भहिओ होदि । तत्तो उवरि बेवस्ससदाणि गंतूण पंचमसंठाण- पंचमसंघ- बीइंदिय-तीइंदिय - चउरिदिय- सुहुम-अपज्जत्त--साहारणपयडीणमट्ठा रसियाणं पढमणिसेया पदंति ३३ | ताधे णिसेयकलावो संखेज्जभागब्भहिओ होदि । तत्तो बेवस्ससदाणि उवरि गंतून अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-णवंसयवेद-निरयगड- निरयगइपाओग्गापुवि-तिरिक्ख गइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वि एइंदिय पंचिदियजादि-तेजाकम्मइयसरीर-ओरालियस रीर-ओरालियस रीरंगोवंग वे उब्वियसरोर - वेडव्वियसरीरंगोवंग इंडसंठाण -- असंपत्त से वट्टसंघडण - वण्ण-गंध रस फास अगुरुअलहुअ - उबघादपरघाद - उस्सास- अप्पसत्यविहायगइ आदावुज्जोव-यावर तस- बादर- पज्जत्त- पत्तेयसरीरअथर असुह- मग दुस्सर- अणादेज्ज - अजसकित्ति- णिमिणणीचागोदपयडीणं वीसियाणं पढमणिसेया पदति ७६ । ताधे णिसेयकलावो संखेज्जेहि भागेहि अब्भहिओ होदि । तत्तो उवरि दसवस्ससदमेत्तमद्वाणं गंतूण पंचणाणावरणीय जवदंसणावरणीय असादावेदणीय पंचंत रायपयडीणं तीसियाणं पद्मणिसेया पदंति ९६ । ताधे णिसेयकलाओ संखेज्जभागन्महियो होदि । तत्तो उवरि दसवस्ससदमेत्तमद्वाणमुवरि गंतूण सोलसकसायाणं पढमणिसेया पदति ११२ । ताधे णिसेककलावो संखेज्जभागन्महिओ होदि । तदो उवरिमसंखेज्जभागहीणकमेण तिण्णि वस्ससहस्साणि गंतूण मिच्छत्तस्स पढमणिसेयो पददि ११३ | पदिदे वि असंखेज्जभागहाणी चेव, देसघादिकम्मपदे से हितो होता है। उससे ऊपर दो सौ वर्ष जाकर पञ्चम संस्थान, पञ्चम संहनन, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन अठारसीय प्रकृतियोंके प्रथम निषेक होते हैं ३३ | तब निषेककलाप संख्यातवें भागप्रमाण अधिक होता है। वहाँसे दो सौ वर्ष ऊपर जाकर आरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तियंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रियजाति, पंचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर, औदारिकआंगोपांग, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकआंगोपांग, हुंडसंस्थान, असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति, आतप, उद्योत, स्थावर, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभ, दुभंग, दुस्वर, अनादेय, अयशः कीर्ति, निर्माण और नीचगोत्र इन वीसिय प्रकृतियोंके प्रथम निषेक पडते हैं ७६ । तब निषेककलाप संख्यातवें भाग प्रमाण अधिक होता है | वहाँसे एक हजार वर्ष प्रमाण स्थान आगे जाकर पाँच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, असातावेदनीय और पाँच अन्तराय इन तीसिय प्रकृतियोंके प्रथम निषेक प्राप्त होते हैं ९६। तब निषेककलाप संख्यातवें भागप्रमाण अधिक होता है। वहाँसे ऊपर एक हजार वर्षप्रमाण स्थान जाकर सोलह कषायोंके प्रथम निषेक प्राप्त होते हैं ११२। तब निषेककलाप संख्यातवें भागप्रमाण अधिक होता है। वहांसे ऊपर असंख्यात भागहीन क्रमसे तीन हजार वर्ष जाकर मिथ्यात्वका प्रथम निषेक प्राप्त होता है ११३। उसके वहाँ पडने पर भी असंख्यात भागहानि ही होती है, क्योंकि, देशघातिकर्मोंके प्रदेशोंसे मिथ्यात्व और बारह कषायरूप सर्वघाति कर्मों के " * अ० का० प्रत्यो । संखेज्जगुण महियो' इति पाठ 1 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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