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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ७. कधं णामबंधस्स तत्थ संभवो ? ण, णामेण विणा इच्छिदत्थपरूवणाए अणुववत्तीदो ! जो सो णामबंधो णाम सो जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाणं वा जीवस्स च अजोवस्स च जीवस्स च अजीवाणं च जीवाणं च अजीवस्स च जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णामं कोरदि बंधोत्ति सो सव्वो णामबंधो णाम ।। ७ ।।
णामस्स पवृत्ती एदेसु अट्ठसु चेव; एदेहितो बज्झस्स अण्णस्साणुवलंभादो । एदे अट्ठसु पवत्तमाणबंधसद्दो णामबंधो कधं नाम अप्पा पयासेदि ? ण, सुज्ज-मणिचंदादिसु स- परप्पयासस्सुवलंभादो ।
जो सो टुवणबंधो णाम सो दुविहो- सब्भावट्ठवणाबंधो चेव असब्भावट्ठवणाबंधो चेव ॥ ८ ॥
सब्भावासब्भावटुवणबंधेहितो पुधभूदट्ठवण बंधाभावादो दुविहो चेव टुवणबंधो होदि । को दुवणबंधो णाम ? अण्णबंधम्मि अण्णबंधस्स सो एसो त्ति बुद्धीए दुवणा शंका- इन दोनों नयोंमें नामबन्ध कैसे सम्भव है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, नामके बिना इच्छित पदार्थका कथन नहीं किया जा सकता; इस अपेक्षा नामबन्धको इन दोनों नयोंके विषय स्वीकार किया है ।
जो यह नामबन्ध है वह इस प्रकार है- एक जीव, एक अजीव, बहुत जीव, बहुत अजीव, एक जीव और एक अजीव, एक जीव और बहुत अजीव, बहुत जीव और एक अजीव तथा बहुत जीव और बहुत अजीव; इनमेंसे जिसका बन्ध यह नाम किया जाता है वह सब नामबन्ध है ॥ ७ ॥
नामकी प्रवृत्ति इन आठों में ही होती है, क्योंकि, इनके बाहर अन्य पदार्थ नहीं
पाया जाता ।
शंका- इन आठ में प्रवृत्त हुआ बन्ध शब्द नामबन्ध होता हुआ अपने आपको कैसे प्रकाशित करता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, सूर्य, मणि और चन्द्र आदिमें स्व और परके प्रकाशनकी योग्यता पाई जाती है । आशय यह है कि जैसे सूर्य आदि स्व-परप्रकाशक होते हैं वैसे नाम शब्द भी स्व-परप्रकाशक है ।
स्थापना बन्ध दो प्रकारका
है-- सद्भावस्थापनाबन्ध और असद्भाव
स्थापनाबन्ध ।। ८ ।।
सद्भावस्थापनाबन्ध और असद्भावस्थापनाबन्धसे जुदा कोई तीसरा स्थापनाबन्ध नहीं पाया जाता, इसलिये स्थापनाबन्ध दो प्रकारका ही होता है ।
शका - स्थापनाबन्ध किसे कहते हैं ?
समाधान - अन्य बन्ध में अन्य बन्धकी ' वह यह है' इस प्रकार बुद्धिसे स्थापना करना स्थापनाबन्ध है | आकृतिवाले पदार्थ में सद्भावस्थापना होती है और आकृतिरहित पदार्थ में • तातो 'णामबंधो' । कथं णाम अप्पाणं' इति पाठः ।
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